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सप्त ऋषि संवत की जानकारी

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राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की कथा तो सभी जानते हैं, और यह भी कि पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के उत्तरी ध्रुव की सीध में जो भी तारा हो उसे ध्रुव तारा कहलाने का अधिकार प्राप्त होता है। ध्रुव तारा हमारे कथा- कहानियों का ही नहीं, खगोल एवं ज्योतिष का भी एक विशिष्ट घटक है। प्राचीन समय से इस तारे की दिशा रात्रि-काले उत्तर दिशा प्रबोधिनी रही है और इस तारे के अभिज्ञान का सदा से एक ही साधन रहा है- आकाश में सप्तर्षिमण्डल के दो प्रथम तारों को मिलाने वाली रेखा की सीध में पड़ने वाला एकल सा तारा ध्रुव तारा होगा। मार्कण्डेय उवाच विवक्षन्तं ततः शक्रं किं कार्यमिति सोऽब्रवीत् ।  उक्तः स्कन्देन ब्रूहीति सो ऽब्रवीद् ‌वासवस्ततः ॥ ७ ॥ मार्कण्डेयजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर इन्द्रको कुछ कहनेके लिये उत्सुक देख स्कन्दने पूछा- 'क्या काम है, कहिये ।' स्कन्दके इस प्रकार आदेश देनेपर इन्द्र बोले-॥ ७ ॥ अभिजित् स्पर्धमाना तु रोहिण्या अनुजा स्वसा ।  इच्छन्ती ज्येष्ठतां देवी तपस्तप्तुं वनं गता ॥ ८ ॥ रोहिणीकी छोटी बहिन अभिजित् देवी स्पर्धाके कारण ज्येष्ठता पानेकी इच्छासे तपस्या करनेके लिये वनमें चली गयी...