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Showing posts from April, 2025

भारतीय व्रत उत्सव | 23 | नवरात्र

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भारतीय व्रत उत्सव | 23 | नवरात्र  नवरात्र समय आश्विन शु० १ से १ तक और चैत्र शु० १ से १ तक । कालनिर्णय नवरात्र का आरम्भ आश्विन शुक्कु पतिपदा और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होता है। जिस दिन प्रतिपदा ६ घड़ी से कम न हो उस दिन इसका आरम्भ करना चाहिए। यदि ६ घड़ी न मिले तो कम-से-कम दो घड़ी प्रतिपदा अवश्य होनी चाहिए। अमावस्या से युक्त प्रतिपदा का नवरात्रारम्भ में निषेध है, परन्तु यदि प्रतिपदा का क्षय हो जाय अथवा दूसरे दिन प्रतिपदा दो घड़ी से भी कम हो तो अमावस्या के साथ की प्रतिपदा भी ली जा सकती है। यद्यपि प्रतिपदा के आरम्भ की १६ घड़ियों का तथा चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग का भी निषेध है, तथापि धर्म-• सिन्धुकार का यह मत है कि इस नियम का मध्याह्न तक ही पालन करना चाहिए। यदि मध्याह्न तक भी उक्त दोष रहे तो अपराह्न या रात्रि में प्रारम्भ न करके मध्याह्न में ही आरम्भ करना चाहिए । विधि प्रतिपदा के दिन प्रातःकाल अभ्यङ्गस्नानादि करके नवरात्र में जिन नियमों का पालन करना हो उनका संकल्प करे। फिर जैसा कुलाचार हो उसके अनुसार ब्राह्मण को बुलाकर अथवा स्वयं स्नान संध्या से निवृत्त होकर मृत्तिका की बे...

पूराग्रन्थें में छिपा विज्ञान 101

पूराग्रन्थें में छिपा विज्ञान 101 ।। खगोल शास्त्रों में प्रकाश की गति (Astronomy Speed of light) ।। खगोल शास्त्र।। खगोल विज्ञान को वेद का नेत्र कहा गया क्योंकि सम्पूर्ण सृष्टियों में होने वाले व्यवहार का निर्धारण काल से होता है और काल का ज्ञान ग्रहीय गति से होता है। अतः खगोल विज्ञान वेदाङ्ग का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण आदि ग्रंथों में नक्षत्र, चन्द्रमास, सौरमास, मलमास, ऋतु परिवर्तन, उत्तरायन, दक्षिणायन, आकाशचक्र, सूर्य की महिमा, कल्प की माप, आदि के संदर्भमें अनेक उदाहरण मिलते हैं। प्रकाश की गति :- ऋग्वेद के प्रथम मंडल में दो ऋचाएं हैं - मनो न योऽध्वनः सद्य एत्येकः सत्रा सूरो वस्व ईशे । ऋग्वेद 1. 79. 9 अर्थात् - मन की तरह शीघ्रगामी जो सूर्य स्वर्गीय पथ पर अकेले चले जाते हैं। तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य । विश्वमा भासि रोचनम् ॥ ऋग्वेद 1.50.9 अर्थात् हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो। उपरोक्त श्लोक पर टिप्पणी /भाष्य करते हुए महर्षि सायणाचार्य ने निम्न श्लोक प्रस्तुत किया - योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च य...

भारतीय व्रत उत्सव | 5 | संवत्सरारम्भ-विज्ञान

भारतीय व्रत उत्सव | 5 | संवत्सरारम्भ-विज्ञान संवत्सरारम्भ समय चैत्रशुक्ल प्रतिपदा काल-निर्णय इसमें सूर्योदय-व्यापिनी प्रतिपदा लेनी चाहिए। दोनों दिन सूर्योदय में प्रतिपदा हो या दोनों ही दिन सूर्योदय में प्रतिपदा न हो तो पहले' दिन ही करना चाहिए । यदि अधिक मास आ जावे तो भी प्रथम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही संवत्सरारम्भ मानना चाहिए; क्योंकि ऐसा अधिक मास अगले वर्ष में ही गिना जाता है। विधि इस दिन घरों पर ध्वजा लगाना, पञ्चाङ्ग-श्रवण, तैलाभ्यङ्ग और मिश्री तथा काली मिर्च सहित नीम के पत्ते खाये जाते हैं। पञ्चाङ्गों में १. 'वत्सरादौ वसन्तादौ बलिराज्ये तथैव च । पूर्वविद्धैव कर्त्तव्या प्रतिपत् सर्वदा बुधैः ॥' (निर्णयसिन्धौ वृद्धवशिष्ठवचनम्) २. 'निष्कर्षस्तु 'शुक्ला देर्मलमासस्य सोन्तर्भवति चोत्तरः ।' इत्यादिवचनात् अर्थिमवर्षान्तःपातान् मलमासमारभ्यैव वर्षप्रवृत्तेः शुक्रास्तादाविव मलमास एक कार्य इति वयं प्रतीमः' (निर्णयसिन्धौ) ३. 'प्राप्ते नूतनवत्सरे प्रतिगृहं कुर्याद्धजारोपणम्, स्नानं मङ्गलमाचरेद् द्विजवरैः साकं सुपूज्योत्सवैः ॥ देवानां गुरुयोषितां च शिशवोऽलङ्कारवस्...

भारतीय व्रत उत्सव | 34 | ग्रहण विज्ञान

भारतीय व्रत उत्सव | 34 | ग्रहण विज्ञान दूसरे के हाथ से निकाले की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गङ्गा का और गङ्गा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है। तीन दिन अथवा एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए । यद्यपि ग्रहण के समय सभी ब्राह्मण पवित्र माने गए हैं। उनमें पात्रापात्र का विवेक नहीं किया जाता, तथापि सत्पात्र को दान करने से अग्निक पुण्य होता है। ग्रहण में यदि श्राद्ध करना हो तो आमश्राद्ध अथवा हिरण्यश्राद्ध करना चाहिए । ग्रहण में श्राद्ध खानेवाले को महादोष बताया गया है। संपन्न लोगों के लिये ग्रहण के समय तुलादानादि भी करने की विधि है। ग्रहण में मन्त्रदीक्षा ले तो मुहूर्त्त देखने की आवश्यकता नहीं है। सूर्यग्रहण में चार प्रहर पूर्व और चन्द्रग्रहण में तीन प्रहर पूर्व स्वस्थ और शक्त लोगों को भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोग...

भारतीय व्रत उत्सव | 4 | काल-विज्ञान

भारतीय व्रत उत्सव | 4 | काल-विज्ञान काल विज्ञान  उपक्रम सारे संसार के व्रत, उत्सव, पर्व अथवा त्यौहार किसी नियत समय पर किये जाते हैं, अतः तत्तद्देशीय व्रतोत्सवादि के समझने के • लिये उन-उन देशों में प्रचलित काल-विभाग का समझना आवश्यक है। इस नियम के अनुसार जब तक भारतीय काल-विज्ञान यथार्थ रूप से न समझ लिया जावे तब तक भारतीय व्रतोत्सवादिक की वैज्ञानिकता को समझना सम्भव नहीं है, इस कारण सबसे पहिले यहाँ भारतीय काल-विज्ञान पर विचार किया जाता है। काल के भेद भारतीय उत्सवादि में ८ प्रकार का काल, काम में आता है-१. संवत्सर, २. अयन, ३. ऋतु, ४. मास, ५. पक्ष, ६. तिथि, ७. वार और ८. नक्षत्र । आगे इनका क्रमशः यथाविधि विवरण दिया जा रहा है। 1-संवत्सर संब¹ ऋतुओं के पूरे एक चक्र को संवत्सर कहते हैं। अर्थात् किसी ऋतु से आरम्भ करके ठीक उसी ऋतु के पुनः आने तक जितना समय लगता है उसका नाम एक संवत्सर है । (¹ सर्वर्तुपरिवर्त्तस्तु स्मृतः संवत्सरो बुधैः । (क्षीरस्वामिकृतायाममरकोशव्यां-ख्यायां भागुरिवचनम्; कालवर्गः श्लो० 20) संवत्सर के मेद भारतीय संवत्सर यद्यपि पाँच प्रकार के हैं- सावन, सौर, चान्द्र, नाक्षत्र और बार...

भारतीय व्रत उत्सव | 3 | विषय-सूची

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भारतीय व्रत उत्सव | 3 | विषय-सूची 1. संवत्सर  –>  संवत्सर के भेद, संवत्सर-विज्ञान 2. अयन  –>  अयन-विज्ञान 3. ऋतु  –> ऋतु-भेद, ऋतु-विज्ञान, तीन ऋतुओं का पक्ष, छः ऋतुओं का पक्ष, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्हे, मन्त, शिशिर, सारांश 4. मास –>  5. पक्ष  –>  पक्ष-विज्ञान 6. तिथि –> तिथि-विज्ञान, तिथियों की क्षय और वृद्धि, क्षय या वृद्धि क्यों ? 7. वार –> वारविज्ञान 8. नक्षत्र –> नक्षत्रविज्ञान 9. संवत्सरारम्भ –>  10. कालनिर्णय –> विधि, समयविज्ञान, चैत्रमास ही क्यों ?, शुक्लपक्ष और प्रतिपदा ही क्यों ?, विधिविज्ञान, कथा के विषय में संवत्सरोत्सव की कथा 11. रामनवमी –> कालनिर्णय, विधि, अवतारविज्ञान, अवतार क्या है ?, अवतार क्यों होते हैं ?, समयविज्ञान, सारांश, विधिविज्ञान, कथा 12. हनुमज्जयन्ती –> कालनिर्णय, विधि, कालविज्ञान, विधिविज्ञान 13. अक्षय तृतीया –> कालनिर्णय, विधि, कालविज्ञान, विधिविज्ञान, दान 14. परशुरामजयन्ती 15. नृसिंह चतुर्दशी –> समयनिर्णय, समयविज्ञान, नृसिंहावतार, वि...