महत्त्वपूर्ण वास्तु सूत्र

महत्त्वपूर्ण वास्तु सूत्र

याद रखें !

★ चूल्हा, गैस स्टोव, हीटर या ओवन जैसी अग्नि उत्पन्न करनेवाली चीजें रसोईघर की पूर्वी दीवार के पास थोड़ी जगह छोड़कर पूर्व में ही रखी जानी चाहिए। ये वस्तुएं इसी तरह से रखें कि रसोई बनानेवाले का मुंह पूर्व दिशा में रहे।

★ पश्चिम या दक्षिण की तरफ मुंह करके रसोई बनानेवाली गृहिणियों का स्वास्थ्य बार-बार बिगड़ता है। शरीर में दुर्बलता महसूस होती है। स्फूर्ति एवं उत्साह की कमी रहती है। मन भी अशांत रहता है। परिवार में दरिद्रता का आगमन होता है। रसोई बनाते समय प्रसन्नचित्त रहना अनिवार्य है। पूर्व की 1 तरफ मुंह रखकर रसोई बनाने से लाभ होता है।

★ रसोईघर में जलव्यवस्था ईशान्य में नहीं करनी चाहिए। हां, वॉशबेसिन ईशान्य की ओर रखा जा सकता है।

★ घर का बेकार सामान झाडू, लकड़ियां आदि नैऋत्य में रखी जाएं।

★ आंगन की सफाई करने के बाद कूड़ा-कचरा तुरंत दूर फेंक देना चाहिए। डोर बैल, आटा पीसने की घरेलू मशीन, फ्रीज आदि वजनदार सामान पश्चिम-नैऋत्य या दक्षिण-नैऋत्य में रखें।

★ अलमारी, तिजोरी, लोहे की अलमारियां उत्तर की तरफ खुलें ऐसी व्यवस्था की जाए। ये चीजें पूर्वोन्मुखी भी रखी जा सकती हैं।

★ उत्तर दिशा कुबेर की दिशा है और कुबेर धनस्वामी होता है। उत्तरी दिशा में खुलती अलमारी, तिजोरी खुलता रखने से वहां धन देवता की दृष्टि रहेगी और इसके कारण धनसंग्रह होगा और बरकत आएगी। कुछ लोग उत्तर को कुबेर का और ईशान्य को ईश्वर का स्थान मानकर अलमारी-तिजोरी उत्तर या ईशान्य की तरफवाले कमरे में रखते हैं। यह ठीक नहीं है। ऐसी जगह में तिजोरी या अलमारी रखने से आर्थिक नुकसान भोगना पड़ता है-यह अनुभव सिद्ध है।

★ स्वयं के रहने के लिए निर्मित मकान का मुख्य प्रवेशद्वार पूर्वोत्तर या ईशान्य में हो। पश्चिम, दक्षिण, आग्नेय एवं पश्चिम-वायव्य द्वार भी ठीक है। किंतु नैऋत्य, पूर्व-आग्नेय एवं उत्तर-आग्नेय में मकान का प्रवेशद्वार नहीं होना चाहिए। दक्षिण में भी मुख्य प्रवेशद्वार न हो।

★ प्रवेशद्वार के सामने खंभा, कुआं, बड़ा पेड़, मोची की दुकान, गैर कानूनी व्यवसाय करनेवालों की दुकानें नहीं होनी चाहिए।

★ घर के कर्ता पुरुष का शयनकक्ष नैऋत्य में हो। मेहमानों को इस शय्यागृह का उपयोग न करने दें।

★ शयनकक्ष में मंदिर नहीं होना चाहिए। अगर जगह की असुविधा हो तो छोटे बाल-बच्चे एवं बुजुर्ग व्यक्ति यहां सो सकते हैं।

★ पश्चिम या दक्षिण में शयनकक्ष होना उत्तम है।

★ पूर्व-उत्तर दिशा में शय्यागृह हो तो नवदंपत्ति वहां न सोएं। अविवाहित सो सकते हैं।

★ घर के दरवाजे एक कतार में दो से अधिक नहीं होने चाहिए। दरवाजों की संख्या सम यानी 4,6,8, 12 होनी चाहिए। 1, 3, 5, 7 हो तो एक दरवाजा कम करें या एक दरवाजा अधिक बनवाएं।

★ घर की खिड़कियां सम संख्या में होनी चाहिए। जिस भूखंड पर मकान बनवाना हो वह भूखंड चौकोर होना चाहिए। तिरछा या अन्य आकार का भूखंड अशुभ होता है।

★ घर बनवाने के लिए जिस भूखंड का चयन करें उसके आसपास के रास्ते भी देखें। भूखंड के उत्तर-पूर्व, पूर्व-उत्तर या ईशान्य में रास्ते हों तो मकान के लिए अच्छा समझना चाहिए।

★ टॉयलेट, सीढ़ी, ओवरहेड टैंक, स्विमिंग पूल, पानी की टंकी आदि भूखंड के ईशान्य में हों।

★ गृह निर्माण का कार्य (खात) नैऋत्य से प्रारंभ करें। पश्चिम एवं दक्षिण में तथा उत्तर एवं पूर्व में खुली जगह अधिक होनी चाहिए।

★ पूजास्थान ईशान्य के कमरे में होना चाहिए। कमरे में पूर्व दिशा की दीवार पर देवघर इस तरह से बैठाएं कि पूजा करनेवाले का मुंह पूर्व की ओर एवं देव-देवताओं के मुंह पश्चिम दिशा की ओर हों।

★ रसोईघर आग्नेय में होना चाहिए। रसोई बनाते समय रसोई में काम करनेवाले का मुंह पूर्व दिशा में हो। कुमारी कन्याओं एवं मेहमानों का कमरा मुख्य रूप से वायव्य में होना चाहिए। कुमारी कन्या इस कमरे का उपयोग शयनकक्ष के रूप में करे तो उसका विवाह समय रहते हो जाएगा। इसके पीछे तर्क यह है कि पूर्व दिशा में हवा प्रभावी होती है।

★ शयनकक्ष में दक्षिण दिशा की ओर पैर करके कभी नहीं सोना चाहिए।

★ दुकान का कैश बॉक्स नैऋत्य में उत्तर की ओर होना चाहिए।

★ विद्यार्थियों को चाहिए कि उत्तर-पूर्वोन्मुखी होकर अध्ययन करें।

★ किसी कड़ी या बीम के नीचे न बैठें तथा सोएं भी नहीं।

★ ऐसे चित्र या पेंटिग न लगाएं जिसमें युद्ध, अपराध, अशान्ति, पीड़ा, यातना अथवा सन्ताप का चित्रण हो। 

★ सामने का द्वार इस तरह बनाएं कि उस पर कोई छाया न पड़े।

★ घर के सामने तुलसी का पौधा लगाएं।

★ घर के भीतर रबर प्लांट अथवा कैक्टस न रखें। घर की सीमा से बाहर इनको रखा जा सकता है। • वर्षा तथा नाले का पानी उत्तर-पूर्व या पूर्व-उत्तर की ओर बहना चाहिए।

★ मकान आदि के निर्माण में हमेशा नया सामान प्रयोग में लाएं।

★ प्रायः वयस्क, बूढ़े तथा अधेड़ लोग सदा अपने आप को दक्षिण-पश्चिम कोने में सुखी या आनन्दित महसूस करते हैं।

★ भवन की ऊंचाई दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर नीची होनी चाहिए।

★ दक्षिण-पश्चिम की दीवारें उत्तर-पूर्व की दीवारों से मोटी होनी चाहिए।

★ नये घर के निर्माण से पहले भूमि पूजन की धार्मिक विधि करनी चाहिए तथा घर में जाने से पहले गृह प्रवेश पूजा करवानी चाहिए।

★ सीढ़ियों के नीचे पूजाकक्ष या टॉयलेट न बनवाएं।

★ मकान या प्लाट के मध्य में कुआं होना अशुभ है।

★ गोलाकर, त्रिभुजाकार, बहुभुजाकार अथवा असंगत या विचित्र आकृति के प्लाट निरन्तर कोई-न-कोई समस्या खड़ी कर देते हैं। समकोण आकार, चतुर्भुजाकर या आयताकार प्लाट अच्छे होते हैं।

★ किसी घर या व्यावसायिक स्थान के उत्तर-पूर्वी कोने को अवरुद्ध करने या रोकने से भगवान की कृपा तथा आशीर्वाद से वंचित रहना पड़ता है। इससे तनाव तथा झगड़े होते हैं और वहां रहनेवालों का विकास नहीं होता।

★ अगर कोई दोष, अशुद्धि, खाई अथवा टूटा हुआ भाग उत्तर-पूर्व में है तो उस भू-स्वामी के यहां अपंग सन्तान पैदा हो सकती है।

★ भीतर प्रवेश करने के स्थान ठीक न हों या सामने के द्वार में रुकावट हो तो बहुत हद तक समृद्धि कम हो जाती है।

★ बिस्तर या सोने के कमरे का स्थान ठीक न होने से वैवाहिक जीवन में बाधा या अप्रसन्नता आती है। 

★ शौचकक्ष/अंगीठी कक्ष उत्तर-पूर्वी कोने में होने से घर या व्यवसाय की आर्थिक दृष्टि से बरबादी हो सकती है और लोगों में मानसिक असंतुलन तथा झगड़े हो सकते हैं।

★ पानी का स्रोत प्लाट के पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व में होना चाहिए। यह दक्षिण-पूर्व, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम में होने से गृहस्वामी, उसकी पत्नी या बेटे को संकट में डाल सकता है। अंडरग्राउंड वाटर टैंक का उत्तर-पश्चिम में होना वंश वृद्धि में रुकावट, मानसिक समस्याएं तथा धन-हानि का कारण है। 

★ उत्तर या पूर्व में अधिक खुली जगह नाम, यश तथा समृद्धि प्रदान करती है। दक्षिण-पश्चिम में अधिक खुली जगह छोड़ना घर के पुरुष वर्ग के लिए घातक होता है, जबकि व्यवसाय में यह वित्तीय घाटे तथा सहयोगियों में आपसी झगड़ों को पैदा करता है। 

★ दक्षिण-पूर्व में गड्‌ढा होना भवन में रहनेवालों के लिए भयंकर रोग का कारण बन सकता है तथा उत्तर-पश्चिम में गड्‌ढा होना शत्रुता तथा मुकदमेबाजी को जन्म देता है। दक्षिण में गड्‌ढा विकास में रुकावट डालता है तथा वित्तीय समस्याएं पैदा करता है।

★ मकान में टॉयलेट दक्षिण या पश्चिम में होना चाहिए। टॉयलेट का दरवाजा पूर्व या आग्नेय में ही।

★ रसोईघर का द्वार मध्य भाग में होना चाहिए। बाहर से आनेवाले को चूल्हा दिखाई नहीं देना चाहिए।

★ घर के उत्तर या पूर्व में सूर्य किरणों को रोकनेवाली बड़ी बिल्डिंग नहीं हो। 

★ मकान की चारदीवारी दक्षिण एवं पश्चिम में अधिक चौड़ी हो।

★ घर के उत्तर या पूर्व में चारदीवारी कम चौड़ी एवं ऊंची होनी चाहिए।

★ स्नानगृह पूर्व की ओर होना उत्तम रहता है। * मकान के इर्द-गिर्द किसी भी दिशा में गड्ढा नहीं होना चाहिए। परिसर में मध्य भाग में भी गड्‌ढ़ा नहीं होना चाहिए। 

★ घर के पश्चिम में बड़ी इमारतें, ऊंचे-पेड़, तालाब एवं ऊंचाई होना फायदेमंद होता है। 

★ घर के अगल-बगल से गुजरते रास्तों का अंत घर के पास न हो। इसको विथिशूल कहा जाता है।

★ घर के सामने किसी भी मंदिर का प्रवेशद्वार नहीं होना चाहिए। मंदिर में स्थापित मूर्ति की दृष्टि घर पर पड़ने से घर में रहनेवालों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

★ घर के आस-पास आग्नेय में विद्युत ऊर्जा केंद्र होना श्रेयस्कर है किंतु वह ईशान्य में नहीं होना चाहिए। • यदि चुंबकीय अंश घर के मध्य से गुजरता हो तो वह फायदेमंद रहेगा।

★ जहां कभी श्मशान रहा हो ऐसा भूखंड न खरीदें।

★ पुराना मकान खरीदना हो तो उसकी अच्छी तरह से तहकीकात करें। पिछले 2-4 महीनों में किसी की मृत्यु हुई हो तो मकान नहीं खरीदना चाहिए। 

★ घर का अहाता-बरामदा होना चाहिए। वह उत्तर या पूर्व में हो।

★ घर की मुख्य सीढ़ियां दक्षिण या पश्चिम की ओर होनी चाहिए। ईशान्य में नहीं होनी चाहिए। वायव्य, आग्नेय दिशा में भी ठीक है।

★ दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य में सीढ़ियां होना लाभप्रद होता है।

★ सीढ़ियों के नीचे कभी न सोएं। भगवान का मंदिर एवं कैश बॉक्स भी वहां न रखें। सीढ़ियों के नीचे का हिस्सा कोठरी के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। • रसोईघर में गैस चूल्हा स्लैब के आग्नेय में पूर्व या दक्षिण की तरफ 2-3 इंच जगह छोड़कर रखना चाहिए। 

★ टॉयलेट में नल ईशान्य की तरफ के कोने में पूर्व या उत्तर की तरफ लगवाएं। आग्नेय या नैऋत्य में नल न हो।

★ घर का गटर या इस्तेमाल किए पानी का पाइप दक्षिण में नहीं होना चाहिए। ड्रेनेज पाइप नैऋत्य की ओर से न लें। वहां पाइप हो तो टपकता हुआ नहीं होना चाहिए।

★ स्नानगृह में धोने के कपड़े वायव्य में रखें। आईना (दर्पण) पूर्व या उत्तर में हो। हीटर या स्विचबोर्ड आग्नेय में लगाएं।

★ पूजास्थान में होमकुंड या अग्निकुंड रखना हो तो वह आग्नेय में रखें। होम में आहुति देते समय मुंह पूर्व की तरफ होना चाहिए।

★ घर के उत्तरी कमरे दक्षिण में स्थित कमरों से बड़े होने चाहिए और ऊंचाई दक्षिणी कमरों से 1 से 3 इंच कम होनी चाहिए।

★ ड्राइंगरूम या बैठक के कमरे का दरवाजा उत्तर या पूर्व में होना चाहिए।

★ मकान में तहखाने (बेसमेंट) की आवश्यकता हो तो वह उत्तर या पूर्व में बनाएं। तहखाने का 1/4

★ सोफासेट, टेबल, फ्रिज, प्रेस करने की मेज, रैक आदि दक्षिण-पश्चिम तरफ के कमरे में रखना चाहिए। टी.वी. का एंटीना नैऋत्य में लगाएं।

★ शयनकक्ष या अन्य कमरे में पलंग रखना हो तो पूर्व-उत्तर में अधिक एवं दक्षिण-पश्चिम में कम जगह खाली छोड़कर रखें।

★ सोते समय सिर दक्षिण दिशा में हो तो शुभ है। किसी भी अवस्था में उत्तर की ओर नहीं रखना चाहिए।

★ घर में मंदिर या पूजा का स्थान ईशान्य में ही रखें।

★ बरतन, कपड़े धोने के बाद पानी नैऋत्य-आग्नेय, वायव्य एवं दक्षिण-पश्चिम दिशा में नहीं बहाना चाहिए। पूर्व, उत्तर एवं ईशान्य में बरतन, कपड़े धोने के बाद का पानी का निकास होना चाहिए।


किस दिशा में क्या हो ?

जातक पारिजात में पूजा स्थान, शय्यागृह, तिजोरी, रसोईघर, कूड़ा-करकट रखने की जगह इत्यादि किस दिशा में होने चाहिए इसका पूर्ण विवरण मिलता है।
आठ दिशाओं में उच्च-नीच के परिणाम
दिशाओं का महत्त्व

वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा को कितना और क्यों महत्त्व दिया गया है-यह जानकारी हम उपरोक्त पंक्तियों में दे चुके हैं। अब पूर्व दिशा कैसे निश्चित करें-यह देखना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। केवल सूर्य जिस दिशा में निकलता है उस दिशा को पूर्व मानना ठीक नहीं होगा। 21 मार्च एवं एवं 21 सितंबर-इन दोनों दिनों में ही सूर्य पूर्व बिंदु में रहता है अन्य दिनों में उत्तरायण रहता है। निश्चित रूप से पूर्व दिशा जानने के लिए अच्छे दिशासूचक यंत्र (Compass) की आवश्यकता होगी। मकान की पूर्व-पश्चिम रेखा ठीक हो तो उस मकान में रहनेवालों को खुशहाली प्राप्त होगी। मकान का विषुववृत्त मानव की कमर की तरह है और विषुववृत्त ठीक न हो तो उस मकान में रहनेवाले परिवार की कमर टूट जाएगी। मकान में विषुववृत्त प्राकृतिक नियमानुसार होने पर वह मकान भाग्यशाली साबित होगा। अर्थात पूर्व दिशा में प्रवेशद्वार होना अपरिहार्य है। संध्या करते समय हम 'ईशान्य दिशे ईश्वराय नमः' बोलते हैं। मकान में ईशान्य दिशा में सूर्य की किरणें आती हों तो उसमें रहनेवालों पर भगवान की कृपा ही समझनी चाहिए। ज्योतिषशास्त्र के महान एवं श्रेष्ठ ग्रंथ जातक पारिजात में आठ दिशाओं का उल्लेख है। अमरकोष में दिशाओं का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है:

सूर्यः शुक्रो महोसुनुः रचर्भानुभोनुजो विधः । 
बुधो बृहरचतिश्चेति दिशा चैव ग्रहाः।

इस श्लोक के अनुसार दिशाओं का क्रम इस तरह है:
क्रमांक        ग्रह        दिशा के अंक
1. सूर्य        पूर्व              1
2. शुक्र       आग्नेय         2
3. मंगल     दक्षिण          3
4. राहु       नैऋत्य          4
5. शनि       पश्चिम          6
6. चंद्र        वायव्य          7
7. बुध       उत्तर             8
8. बृहस्प       ईशान्य       8

राशियों की दिशाएं
राशि                        दिशा
मेष, सिंह, धनु              पूर्व
मिथुन, तुला, कुंभ        पश्चिम
वृष, कन्या, मकर        दक्षिण
कर्क, वृश्चिक, मीन        उत्तर 

आठों दिशाओं का महत्त्व

जिन आठ दिशाओं पर वास्तुशास्त्र की नींव टिकी है, उनके महत्त्व को समझना जरूरी है। इन दिशाओं से उनका आध्यात्मिक महत्त्व भी जुड़ा हुआ है। 

★ वास्तुशास्त्री दिशाओं के अनुसार कमरे, बैठक, रसोई, स्नानगृह आदि का निर्माण करने की सलाह देते हैं।

★ पूर्व दिशा वंश दिशा कहलाती है। भवन निर्माण के समय पूर्व दिशा का कुछ स्थान खुला छोड़ देना चाहिए। वंश के स्वामी को लंबी उम्र प्राप्त होती है।

★ पश्चिम दिशा यश, कीर्ति, संपन्नता एवं सफलता प्रदान करती है।

★ उत्तर दिशा मां का स्थान है। उत्तर में खाली स्थान छोड़ने से ननिहाल पक्ष लाभान्वित होता है।

★ उत्तर दिशा धन-धान्य, सुख-शांति एवं प्रसन्नता देनेवाली दिशा है।

★ ईशान्य में किसी भी प्रकार का दोष नहीं होना चाहिए। यह वंश-वृद्धि को स्थायित्व प्रदान करता है।

★ वायव्य कोण मित्रता या शत्रुता का जन्मदाता है। यदि इस कोण में दोष रहेंगे तो आपके अनेक शत्रु होंगे। वायव्य दोषरहित होने से आपके अनेक मित्र बनेंगे, जो आपके लिए लाभदायक सिद्ध होंगे।

★ आग्नेय गर्म होने के कारण मनुष्य को स्वास्थ्य प्रदान करता है किंतु दोषपूर्ण होने पर गृहस्वामी को क्रोधी स्वभाव का बनाता है।

दिशा एवं उनके अधिष्ठाता देवता

हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य ने सर्वप्रथम सूर्य को अपना आराध्य माना। सूर्य प्रकाश एवं उर्जा का स्रोत है। हमारे आचार्यों ने हजारों वर्ष पूर्व सूर्य की किरणों का विश्लेषण करने के बाद अपने निवास स्थलों का निर्माण करवाया। हमारे पूर्वज सूर्य की किरणों में स्थित जीवनदायी तत्त्वों से परिचित थे। अतः पूर्वोन्मुखी आवास को सर्वोत्तम माना गया है। यही कारण है कि सुविज्ञ वास्तुशास्त्री सूर्य को आधार मानकर एवं दिशाओं पर पड़नेवाली सूर्य-रश्मियों के प्रभाव देख-समझकर गृहनिर्माण की योजना बनाते हैं।

विभिन्न दिशाओं में विभिन्न देवताओं का वास माना गया है। इसलिए वास्तुशास्त्र को भली-भांति जानने-समझने के लिए दिशा ज्ञान, दिशा महत्त्व के साथ-साथ दिशा के अधिष्ठित देवताओं को जानने की भी नितांत आवश्यकता है।

दिशा                                देवता
उत्तर                                कुबेर, सोम
दक्षिण                               यम
पूर्व                                  इंद्र एवं सूर्य
पश्चिम                               वरूण                                
उत्तर-पूर्व (ईशान्य)               सोम, शिव
पूर्व-दक्षिण (आग्नेय)            ब्रह्मा
दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य)         निऋति
उत्तर-पश्चिम (वायव्य)            वायु

नौ सिद्धांत

★ हम जिस भूखंड पर मकान बनाना चाहते हैं उसका आकार चौरस है या लंब चौरस-यह सर्वप्रथम देखें। चौरस या लंब चौरस भूखंड मकान बनवाने के लिए उत्तम होते हैं।

★ मकान के इर्द-गिर्द सड़कें होती हैं। ये सड़कें किस दिशा में हैं, यह देखें। पूर्व या उत्तर दिशा में सड़कें होना शुभ फलदायक है।

★ वास्तुशास्त्र में पूर्व और उत्तर दिशा को मुख्य महत्त्व दिया गया है। पूर्व एवं उत्तर के मध्य जो कोण है उसे ईशान्य नाम देकर उसको भी महत्ता प्रदान की गई है। पूर्व-उत्तर-ईशान्य में प्रवेशद्वार एवं खिड़‌कियां होना वास्तु सम्मत है। दक्षिण एवं पश्चिम में खिड़कियां कम होनी चाहिए।

★ हिंदू धर्म में दहलीज को बड़ा महत्त्व प्राप्त है। अनेक अवसरों पर उसका पूजन किया जाता है। इसलिए मकान की एवं मकान में बनाए जानेवाले कमरों की दहलीज अवश्य बनानी चाहिए।

★ घर का ईशान्य खाली रहना चाहिए। पूजागृह इस कोण में बनाना चाहिए। ईशान्य में ओवरहेड टंकी बनाकर पानी रखने का स्थान बनाना चाहिए।

★ शयनकक्ष में पलंग दक्षिण की दीवार से सटकर हो तो श्रेयस्कर होगा। सोते समय सोनेवाले का सिर दक्षिण दिशा में रहे तो अच्छा। मानवीय शरीर में मैगनेटिक पावर होती है। सिर उत्तर की ओर करने से चुंबक के नियमानुसार दो समान ध्रुवों के बीच आकर्षण होता है। इससे शरीर के रक्तसंचार में अवरोध के कारण मस्तिष्क को आवश्यक रक्त प्राप्त होने में आंशिक कमी आ जाती है। जितनी नींद आवश्यक है उतनी नहीं मिलने से मानसिक एवं शारीरिक अस्वस्थता पैदा होती है। नींद ठीक से न आने के कारण मन बोझिल और तनावग्रस्त हो जाता है। परिणामस्वरूप कार्यशक्ति कमजोर हो जाती है।

★ वास्तुशास्त्र में अग्नि का स्थान आग्नेय में निश्चित किया गया है। इसलिए रसोईघर पूर्व एवं पश्चिम दिशा के बीच के आग्नेय कोण में रखना हर दृष्टि से श्रेयस्कर होता है।

★ गृहस्वामी का शयनकक्ष (सोने की जगह) नैऋत्य में हो, ऐसा वास्तुशास्त्र में कहा गया है। दक्षिण एवं पश्चिम दिशा के बीचवाले कोण का नाम नैऋत्य है। घर का निष्प्रयोज्य सामान, कूड़ा-कचरा या स्टोर रूम नैऋत्य दिशा में होना चाहिए। नैऋत्य को वजनदार बनाना चाहिए। घर के बाहर खाली जगह हो तो वहां बेकार चीजें रखी जा सकती हैं।

★ मकान के मुख्य द्वार के बीच खंभा या पिलर आए तो उसके कारण स्तंभ-वेध दोष उत्पन्न होता है। ऐसे दोष का निवारण होने पर उस मकान में रहनेवाले की आर्थिक और शारीरिक स्थिति अच्छी रहेगी।

 

ग्रह भूमि शोधन और वस्तु विचार

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गज पृष्ट : जिस स्थान में दक्षिण पश्चिम नैरेत्य और बायब्य कोण की भूमि उच्च हो, उसको गज पृष्ट कहा जाता है। उसमें घर बना कर बसने से धन धान्य संतान आयु की वृद्धि होती हैं।

कूर्म पृष्ठ : कूर्म पृष्ट जहां मध्य में उच्च हो और चारो दिशाओं में झुकाव हो वह कूर्म पृष्ठ कहलाता है। माना जाता है कि उस स्थान में वास करने से नित्य उत्साह धन धान्य संतान आरोग्य यश और प्रतिष्ठा की वृद्धि होती हैं।

दैत्य पृष्ट :  दैत्य पृष्ट जहां ईशान कोण पूर्व और अग्नि कोण में उच्च हो और पश्चिम में नीचा हो तो वह दैत्य पृष्ठ कहलाता है। माना जाता है कि उसमे बास करने से अशुभ फल मिलता है।

नाग पृष्ट  : नाग पृष्ट जहां दशिन्न और उत्तर दोनों दिशा में उच्च हो बीच में नीचा हो वह स्थान नागा पृष्ट कहलाता है। जहां पर वास करने वाले को अत्यंत शुभ कहा गया है।

ब्राम्हण भूमि : ब्राम्हण भूमि जहां की मिट्टी श्वेत वर्ण की और कोमल हो वह ब्राह्मण भूमि कही गई है। जो ब्राम्हण के लिए विशेष शुभ प्रद है।

छत्रीय भूमि : छत्रीय भूमि जहां की मिट्टी लाल देखने में आए। वह छत्री भूमि छत्रियो के लिए शुभ होती हैं।

वैश्य भूमि : वैश्य भूमि जहां की मिट्टी का वर्ण पीला हो वह भूमि वैश्यो के लिए शुभ प्रद होती है।

शुद्र भूमि : शुद्र भूमि जहां की मिट्टी कृष्ण वर्ण हो वह शुद्र के बसने योग्य होती है।

चारो वर्ण : चारो वर्ण अपने-अपने वर्ण के भूमि में वास करें तो शुभ फल कहा गया है। कहा जाता है कि यह फलादेश पहले समय के राजा महाराजा जिसके पास ज्यादा जमीन था, तो उसी वर्ण भूमि में बसते थे। अब समय के अनुसार जो जहां भी बसे ताहा सुंदर देशू वाली कहावत सही है।

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NOTE: माना जाता है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार पर शेर मुखी दुकान और गज मुखी मकान शुभ होता है।

शेर मुखी : आईये जानते है शेर मुखी क्या है, जिसकी आगे का माथा चौड़ा होता है पीछे का हिस्सा पतला होता है उसे शास्त्र शेर मुखी कहते है। वहां व्यापार करने से बहुत लाभ होता है।

गो मुखी : गो मुखी को लेकर बतादें कि जिसका आगे का माथा पतला हो उसे उस स्थान में मकान बनाना शुभ होता है।

वहीं जिस जो भूमि चारो दिशाओं में बराबर चौहद्दी हो वह उत्तम मकान होता है।
"सूर्य भेदी उत्तर दछिन्न लंबा हो
चंद्र भेदी जहां पूर्व पश्चिम लंबा हो
सूर्य भेदी तमो गुण वाला होता है 
चंद्र भेदी राजो गुण वाला होता है"

दस दिशाओ नाम इस प्रकार से होते है-

1 - पूर्व दिशा

2- पश्चिम दिशा

3 - उत्तर दिशा

4 - दक्षिण दिशा

5 - उत्तर - पूर्व दिशा या ईशान कोण

6 - दक्षिण- पूर्व दिशा या आग्नेय कोण

7 - दक्षिण- पश्चिम दिशा या नैॠति कोण

8 - उत्तर - पश्चिम दिशा या वायव्य कोण

9 - आकाश (ऊपर)

10 - पाताल (नीचे)



1 पूर्व दिशा- पूर्व दिशा में दरवाजे या मुख्य द्वार पर मंगलकारी तोरण लगाना शुभ माना गया है। यह सूर्योदय की दिशा है। पूर्व दिशा से सकारात्मक किरणें घर में प्रवेश करती हैं। गृह-स्वामी की लंबी आयु और संतान सुख की प्राप्ति के लिए घर के मुख्य द्वार व खिड़की का पूर्व दिशा में होना अति शुभ माना गया है।

2 पश्चिम दिशा- पश्चिम दिशा की भूमि तुलनात्मक रूप से थोड़ी उँची होनी चाहिए। भूमि का उँचा होना सफलता और कीर्ति के लिए शुभ संकेत माना गया है। पश्चिम दिशा में टाॅयलेट या रसोईघर का निर्माण किया जा सकता है, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि दोनों का निर्माण एक साथ नहीं किया जाना चाहिए।

3 उत्तर दिशा- उत्तर दिशा में सबसे अधिक खिड़की और दरवाजे होने चाहिए। बालकनी और वाॅश बेसिन भी उत्तर दिशा में होने चाहिए। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर करियर में रूकावट और धन की हानि होने लगती है। वास्तु के अनुसार उत्तर दिशा की भूमि का ऊंचा होना शुभ होता है।

4 दक्षिण दिशा- दक्षिण दिशा में किसी भी तरह का शौचालय, खुलापन आदि नहीं होना चाहिए। इस दिशा की भूमि भी तुलनात्मक रूप से थोड़ी उँची होनी चाहिए। इस दिशा की भूमि पर भार (वजन) रखने से गृहस्वामी हमेशा सुखी, समृद्ध और निरोगी होता है। धन को भी इसी दक्षिणी दिशा में रखने से उसमें हमेशा बढ़ोत्तरी होती है।

5 ईशान दिशा- पूर्वी दिशा और उत्तरी दिशा जिस स्थान पर मिलती है, उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं। सभी दिशाओं में सर्वोत्तम दिशा ईशान दिशा है। ईशान दिशा के स्वामी भगवान शिव हैं। यह दिशा सभी दिशाओं से शुभ मानी जाती है, क्योंकि इस दिशा में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इस दिशा में कभी भी शौचालय नहीं बनाना चाहिए।

6 वायव्य दिशा- उत्तर और पश्चिम के बीच की दिशा को वायव्य दिशा कहा जाता है। घर में घरेलू नौकर है, तो उसका कमरा इसी दिशा में होना चाहिए। शयनकक्ष, गौशाला, गैरेज आदि भी इसी दिशा में होना चाहिए।

7 आग्नेय दिशा- पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा को आग्नेय दिशा कहा जाता है। यह अग्नि की दिशा है, इसलिए इसे आग्नेय दिशा कहते हैं। इस दिशा में रसोईघर, गैस, बाॅयलर, ट्रांसफार्मर आदि होना चाहिए।

8 नेऋत्य दिशा- दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा को नेऋत्य दिशा कहा जाता है। इस दिशा में खुलापन यानि खिड़की, दरवाजे बिल्कुल भी नहीं होने चाहिए। गृह-स्वामी का कमरा इस दिशा में स्थित होना चाहिए। इस दिशा में मशीनें कैश काउंटर आदि भी रख सकते हैं।




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