प्राचीन भारत में आवर्त गतियों की समझ और इस ज्ञान का उपयोग
प्राचीन भारत में आवर्त गतियों की समझ और इस ज्ञान का उपयोग आनंद एम. शरण प्रोफ़ेसर 5 दिसंबर, 2003 इंजीनियरिंग संकाय, मेमोरियल यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूफाउंडलैंड, सेंट जॉन्स, न्यूफाउंडलैंड, कनाडा A1B 3X5; फैक्स: (709) 737 - 4042 ई-मेल: asharan@engr.mun.ca अमूर्त यह शोधपत्र आकाश में देखी जा सकने वाली सूक्ष्म आवधिक गतियों के बारे में प्राचीन भारतीयों के ज्ञान से संबंधित है। यह शोध भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर भी देता है - विक्रम संवत (युग) का आरंभिक वर्ष 57 ईसा पूर्व क्यों है? इसका उत्तर पृथ्वी की धुरी के अग्रगमन के कारण वसंत विषुव के स्थानांतरण के ज्ञान, राशि चक्र के विभिन्न चिह्नों और भारत के ऐतिहासिक अभिलेखों से मिलता है। परिचय भारत में, दो सामान्यतः प्रयुक्त कैलेंडर हैं - पहला शक है जो 78 ई. से शुरू होता है जब दक्षिण भारत के शालिवाहन राजा ने मालवा के शक राजा को हराया था और दूसरा विक्रम कैलेंडर कहलाता है जो 57 ई.पू. से शुरू होता है। हालांकि, यह ज्ञात नहीं है कि इसे 57 ई.पू. से क्यों शुरू किया...