चन्द्र ग्रहण


चन्द्र ग्रहण चित्रण

जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है, तब इसे चन्द्र ग्रहण कहा जाता है।

चन्द्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा के दिन ही होता है। हिन्दु कैलेण्डर में पूर्ण चन्द्र दिवस को पूर्णिमा अथवा पौर्णमी के रूप में जाना जाता है।

चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा पर पड़ रहा सूर्य का प्रकाश पृथ्वी द्वारा अवरुद्ध हो जाता है। पृथ्वी के वायुमण्डल से परावर्तित प्रकाश चन्द्रमा पर पड़ने के कारण ही वह चन्द्र ग्रहण के दौरान दिखाई देता है। यदि पृथ्वी से प्रकाश परावर्तित नहीं हो तो चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा अदृश्य हो जाता। पृथ्वी से परावर्तित प्रकाश के कारण चन्द्रग्रहण के समय चन्द्रमा लाल रँग का दिखता है।

चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा पर पड़ने वाली पृथ्वी की छाया को उपच्छाया एवं प्रच्छाया क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। भौतिक विज्ञान के नियमों के कारण सभी ग्रहों की छाया दो क्षेत्रों का निर्माण करती हैं, जिन्हें उपच्छाया एवं प्रच्छाया क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। उपरोक्त आरेख से यह स्पष्ट है कि प्रच्छाया क्षेत्र में अंधकार है क्योंकि इस क्षेत्र तक सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता है, जबकि उपच्छाया क्षेत्र पूर्णतः अंधकारमय नहीं है क्योंकि इस क्षेत्र में कुछ मात्रा में सूर्य का प्रकाश पहुँचता है।

जब चन्द्रमा प्रच्छाया क्षेत्र के अन्तर्गत आता है तब पृथ्वी से पूर्ण चन्द्र ग्रहण देखा जाता है। यदि चन्द्रमा प्रच्छाया क्षेत्र से आंशिक रूप से निकलता है, किन्तु पूर्णतः पार नहीं करता, उस स्थिति में पृथ्वी से आंशिक चन्द्र ग्रहण देखा जाता है।

उपच्छाया चन्द्र ग्रहण तब होता है जब चन्द्रमा छाया के प्रच्छाया क्षेत्र को बिना स्पर्श किये उपच्छाया क्षेत्र से निकलता है। उपच्छाया चन्द्र ग्रहण कम महत्वपूर्ण होते हैं तथा सामान्यतः उन पर ध्यान नहीं जाता है क्योंकि यह ग्रहण नग्न आँखों से दिखाई नहीं देते हैं। हिन्दु कैलेण्डर में भी उपच्छाया चन्द्र ग्रहण को सूचीबद्ध नहीं करते हैं तथा इसे पूर्णतः अनदेखा किया जाता है।

उपरोक्त आरेख द्वारा यह स्पष्ट होना चाहिये कि पूर्ण चन्द्र ग्रहण के समय ग्रहण उपच्छाया चरण से आरम्भ होता है एवं आंशिक प्रच्छाया चरण तक चलता है तथा अन्त में पूर्ण ग्रहण के चरण में आ जाता है। आंशिक प्रच्छाया रूप में पुनः आने से पूर्व कुछ समय के लिये चन्द्रमा पूर्ण ग्रहण चरण में रहता है तथा अन्त में पूर्णतः ग्रहण से मुक्त होने से पूर्व उपच्छाया चरण में आता है।

यह स्मरण रखना रोचक है कि पृथ्वी पर कुछ स्थानों पर पूर्ण चन्द्र ग्रहण या आंशिक चन्द्र ग्रहण को कुछ स्थानों पर मात्र एक उपच्छाया ग्रहण के रूप में ही देखा जा सकता है। यह उस स्थिति में होता है जब चन्द्रोदय होता है, जब चन्द्रमा प्रच्छाया क्षेत्र से उपच्छाया क्षेत्र में उदय होता है अथवा जब चन्द्रास्त होता है, जब चन्द्रमा उपच्छाया क्षेत्र से प्रच्छाया क्षेत्र में स्थानान्तरित होने ही वाला होता है। उपरोक्त घटनाक्रम के कारण पृथ्वी पर कुछ स्थानों पर पूर्ण चन्द्र ग्रहण को आंशिक चन्द्र ग्रहण रूप में देखा जा सकता है।

एक वर्ष में कुल 0 से 3 (0 और 3 सम्मिलित) चन्द्र ग्रहण हो सकते हैं। किसी ग्रहण का पूर्ण चन्द्र चरण एक से दो घण्टे तक रहता है तथा उपच्छाया चरण से उपच्छाया चरण तक का सम्पूर्ण चन्द्र ग्रहण लगभग चार से छह घण्टे तक रहता है। एक चन्द्र ग्रहण के पूर्ण चन्द्र, आंशिक प्रच्छाया/चन्द्र या केवल उपच्छाया ग्रहण होने की सम्भावना लगभग समान होती है।

वैज्ञानिक रूप से आंशिक अथवा पूर्ण दोनों ही प्रकार के चन्द्र ग्रहण को नग्न आँखों से देखना सुरक्षित है।

ग्रहण की दृश्यता के बारे में अधिक जानकारी के लिये कृपया मार्च 14, 2025 का पूर्ण चन्द्र ग्रहण का प्लॉट देखें।

चन्द्र ग्रहण के समय पर टिप्पणी

जब चन्द्र ग्रहण मध्यरात्रि (१२ बजे) से पहले लग जाता है परन्तु मध्यरात्रि के पश्चात समाप्त होता है - दूसरे शब्दों में जब चन्द्र ग्रहण अंग्रेजी कैलेण्डर में दो दिनों का अधिव्यापन (ओवरलैप) करता है - तो जिस दिन चन्द्रग्रहण अधिकतम होता है उस दिन की दिनाँक चन्द्रग्रहण के लिये दर्शायी जाती है। ऐसी स्थिति में चन्द्रग्रहण की उपच्छाया तथा प्रच्छाया का स्पर्श पिछले दिन अर्थात मध्यरात्रि से पहले हो सकता है।

इस पृष्ठ पर दिये चन्द्रोदय और चन्द्रास्त के समय लंबन/विस्थापनाभास के लिये संशोधित हैं। लंबन का संशोधन चन्द्रग्रहण देखने के लिये उत्तम समय देता है।

हिन्दु धर्म और चन्द्र ग्रहण

हिन्दु धर्म में चन्द्रग्रहण एक धार्मिक घटना है जिसका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। जो चन्द्रग्रहण नग्न आँखों से स्पष्ट दृष्टिगत न हो तो उस चन्द्रग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता है। मात्र उपच्छाया वाले चन्द्रग्रहण नग्न आँखों से दृष्टिगत नहीं होते हैं इसीलिये उनका पञ्चाङ्ग में समावेश नहीं होता है और कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता है। केवल प्रच्छाया वाले चन्द्रग्रहण, जो कि नग्न आँखों से दृष्टिगत होते हैं, धार्मिक कर्मकाण्डों के लिये विचारणीय होते हैं। सभी परम्परागत पञ्चाङ्ग केवल प्रच्छाया वाले चन्द्रग्रहण को ही सम्मिलित करते हैं।

यदि चन्द्रग्रहण आपके शहर में दर्शनीय नहीं हो परन्तु दूसरे देशों अथवा शहरों में दर्शनीय हो तो कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता है। लेकिन यदि मौसम की वजह से चन्द्रग्रहण दर्शनीय न हो तो ऐसी स्थिति में चन्द्रग्रहण के सूतक का अनुसरण किया जाता है और ग्रहण से सम्बन्धित सभी सावधानियों का पालन किया जाता है।


सूतक

सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण से पूर्व की एक निश्चित समयावधि को सूतक के रूप में जाना जाता है। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार सूतक काल के समय पृथ्वी का वातावरण दूषित होता है। सूतक के अशुभ दोषों से सुरक्षित रहने हेतु अतिरिक्त सावधानी रखनी चाहिये।

सूतक समयावधि

सूर्य ग्रहण से पूर्व सूतक काल चार प्रहर तक माना जाता है तथा चन्द्र ग्रहण के दौरान ग्रहण से पूर्व तीन प्रहर के लिये सूतक माना जाता है। सूर्योदय से सूर्योदय तक आठ प्रहर होते हैं। अतः सूर्य ग्रहण से बारह घण्टे तथा चन्द्र ग्रहण से नौ घण्टे पूर्व से सूतक काल माना जाता है।

ग्रहणकाल के समय भोजन

ग्रहण एवं सूतक के दौरान समस्त प्रकार के ठोस एवं तरल खाद्य पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। अतः सूर्य ग्रहण से बारह घण्टे तथा चन्द्र ग्रहण से नौ घण्टे पूर्व से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिये। यद्यपि बालकों, रोगियों तथा वृद्धों के लिये भोजन मात्र एक प्रहर अर्थात तीन घण्टे के लिये ही वर्जित है।

किसी स्थान पर ग्रहण दर्शनीय होने पर ही वहाँ सूतक काल माना जाता है।

गर्भवती स्त्रियों के लिये सावधानियाँ

गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण काल में बाहर न निकलने का सुझाव दिया जाता है। मान्यता है कि राहु व केतु के दुष्प्रभाव के कारण शिशु शारीरिक रूप से अक्षम हो सकता है तथा गर्भपात की सम्भावनायें भी बढ़ जाती है। ग्रहणकाल में गर्भवती स्त्रियों को वस्त्र आदि काटने या सिलने अथवा ऐसे अन्य कार्य न करने का सुझाव दिया जाता है, क्योंकि इन गतिविधियों का भी शिशु पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

प्रतिबन्धित गतिविधियाँ

तेल मालिश करना, जल ग्रहण करना, मल-मूत्र विसर्जन, बालों में कन्घा करना, मञ्जन-दातुन करना तथा यौन गतिविधियों में लिप्त होना ग्रहण काल में प्रतिबन्धित माना जाता है।

ग्रहणोपरान्त अनुष्ठान

यह सलाह दी जाती है कि पहले से बने हुए भोजन को त्यागकर ग्रहण के पश्चात् मात्र स्वच्छ एवं ताजा बने हुए भोजन का ही सेवन करना चाहिये। गेहूँ, चावल, अन्य अनाज तथा अचार इत्यादि जिन्हें त्यागा नहीं जा सकता, इन खाद्य पदार्थों में कुश घास तथा तुलसी दल डालकर ग्रहण के दुष्प्रभाव से संरक्षित किया जाना चाहिये। ग्रहण समाप्ति के उपरान्त स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देनी चाहिये। ग्रहणोपरान्त दान करना अत्यन्त शुभ व लाभदायक माना जाता है।

ग्रहण के दौरान मंत्र जाप करें

तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन।
हेमताराप्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव॥१॥

श्लोक अर्थ - अन्धकाररूप महाभीम चन्द्र-सूर्य का मर्दन करने वाले राहु! सुवर्णतारा दान से मुझे शान्ति प्रदान करें।

विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहिकानन्दनाच्युत।
दानेनानेन नागस्य रक्ष मां वेधजाद्भयात्॥२॥

श्लोक अर्थ - सिंहिकानन्दन (पुत्र), अच्युत! हे विधुन्तुद, नाग के इस दान से ग्रहणजनित भय से मेरी रक्षा करो।




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