अवतार व सृष्टि
भारतीय धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, विभिन्न देवताओं ने समय-समय पर धर्म की स्थापना, अधर्म के विनाश और लोक कल्याण हेतु पृथ्वी पर अवतार लिए। ये अवतार चार युगों — सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग — में हुए। नीचे प्रमुख देवताओं (विशेषतः भगवान विष्णु के) अवतारों और उनके युगों के अनुसार विवरण दिया गया है:
1. सतयुग में अवतार
सतयुग को सत्य और धर्म का युग कहा जाता है। इसमें अधर्म बहुत कम था, पर जब भी अधर्म ने सिर उठाया, देवताओं ने अवतार लिए:
भगवान विष्णु के अवतार:
- मत्स्य अवतार: एक मछली के रूप में मनु को प्रलय से बचाया।
- कूर्म अवतार: समुद्र मंथन में मंदराचल पर्वत को थामने के लिए कछुए के रूप में।
- वराह अवतार: हिरण्याक्ष नामक राक्षस से पृथ्वी को बचाने के लिए।
- नरसिंह अवतार: हिरण्यकशिपु के अंत के लिए — आधा नर, आधा सिंह।
2. त्रेतायुग में अवतार
त्रेतायुग में धर्म घटने लगता है और अधर्म बढ़ता है। इस युग में प्रमुख अवतार हुए:
भगवान विष्णु के अवतार:
- वामन अवतार: बली राजा से स्वर्ग का अधिकार पुनः देवों को दिलाया।
- परशुराम अवतार: क्षत्रियों के अत्याचार को रोकने के लिए ब्राह्मण योद्धा के रूप में।
- राम अवतार: रावण का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की।
3. द्वापरयुग में अवतार
धर्म इस युग में और भी घट जाता है, और अधर्म कई रूपों में बढ़ता है।
भगवान विष्णु के अवतार:
- बलराम (कुछ ग्रंथों में): कृष्ण के बड़े भाई, कृषक संस्कृति के प्रतिनिधि।
- श्रीकृष्ण अवतार: महाभारत के नायक, भगवद्गीता का उपदेश दिया।
(कुछ ग्रंथों में बलराम को अवतार नहीं, बल्कि शेषनाग का अवतार माना गया है)
4. कलियुग में अवतार
कलियुग अधर्म का युग है। अब तक केवल एक ही अवतार हुआ है और एक भविष्य में होगा:
अब तक:
- बुद्ध अवतार: कुछ पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने यज्ञों और हिंसा का त्याग कर अहिंसा का मार्ग दिखाया।
भविष्य में:
- कल्कि अवतार (आने वाला): घोड़े पर सवार होकर संसार को अधर्म से मुक्त करेंगे और सतयुग की पुनः स्थापना करेंगे।
अन्य देवताओं के अवतार
-
शिवजी के अवतार:
- वीरभद्र (सतयुग): दक्ष यज्ञ के विध्वंस हेतु।
- काल भैरव: अधर्म के दमन हेतु।
- कुछ ग्रंथों में हनुमान को शिव का अवतार माना जाता है।
-
देवी के अवतार (दुर्गा/काली आदि):
- महिषासुरमर्दिनी: त्रेतायुग या सतयुग में।
- सती/पार्वती: शिव पत्नी रूप में, त्रेतायुग के बाद की मानी जाती हैं।
- सीता: लक्ष्मी का अवतार, राम की पत्नी (त्रेतायुग)।
- राधा: लक्ष्मी स्वरूप, द्वापरयुग।
यदि आप चाहें, तो मैं प्रत्येक युग के अवतारों की अधिक विस्तृत कथा भी प्रदान कर सकता हूँ — जैसे की परशुराम या नरसिंह अवतार की विस्तार से कहानी।
शुरुआत करते हैं सतयुग के प्रमुख अवतारों से। यहाँ मैं पहले नरसिंह अवतार और फिर परशुराम अवतार (त्रेतायुग) की विस्तार से कथा प्रस्तुत करता हूँ:
1. नरसिंह अवतार (सतयुग)
पृष्ठभूमि:
हिरण्यकशिपु एक असुर था, जिसने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि वह न तो मानव से मरेगा, न पशु से, न दिन में, न रात में, न अंदर, न बाहर, न धरती पर, न आकाश में, न किसी शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह अत्यंत अहंकारी और अत्याचारी हो गया।
उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु ने कई बार प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया लेकिन हर बार विष्णु ने उसे बचा लिया।
अवतार की घटना:
अंत में हिरण्यकशिपु ने क्रोधित होकर प्रह्लाद से पूछा — "क्या तेरा विष्णु हर जगह है? क्या वह इस खंभे में भी है?"
प्रह्लाद ने कहा, "हाँ।"
हिरण्यकशिपु ने खंभे को तोड़ा। उसी क्षण भगवान विष्णु नरसिंह रूप में प्रकट हुए — न मानव, न पशु — एक सिंहमुखी पुरुष।
हिरण्यकशिपु का वध:
- समय: संध्याकाल (न दिन, न रात)
- स्थान: प्रांगण की चौखट (न अंदर, न बाहर)
- स्थिति: गोद में रखकर (न धरती, न आकाश)
- हथियार: नखों से (न शस्त्र)
भगवान नरसिंह ने हिरण्यकशिपु को अपने नखों से फाड़कर मार डाला और धर्म की रक्षा की।
2. परशुराम अवतार (त्रेतायुग)
पृष्ठभूमि:
परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ — पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका।
किंतु वे केवल ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि क्षत्रधर्म भी निभाते थे। उनका उद्देश्य था — अत्याचारी और अहंकारी क्षत्रियों का संहार।
हैहय वंश और कर्त्तव्य:
एक समय हैहय वंश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रबाहु) ऋषि जमदग्नि के आश्रम आया और बलपूर्वक उनका कामधेनु गाय ले गया। परशुराम जी ने क्रोधित होकर कार्तवीर्य को मार डाला और गाय वापस लाई।
कार्तवीर्य के पुत्रों ने प्रतिशोध में ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।
क्षत्रियों का संहार:
पिता की मृत्यु से क्रोधित होकर परशुराम जी ने 21 बार सम्पूर्ण पृथ्वी से क्षत्रियों का संहार किया। उन्होंने उनके रक्त से पांच नदियाँ प्रवाहित कीं और बाद में शांति के लिए पश्चाताप भी किया।
विशेषताएँ:
- परशुराम जी अजर-अमर माने जाते हैं।
- उन्हें महाभारत युग में भी देखा गया — उन्होंने कर्ण और भीष्म को अस्त्र-विद्या सिखाई।
यदि आप चाहें, तो मैं अगला अवतार — जैसे कि राम अवतार, कृष्ण अवतार या वामन अवतार — भी विस्तार से लिख सकता हूँ। कौन सा अवतार आप अगला पढ़ना चाहेंगे?
आइए अब हम त्रेतायुग के सबसे प्रमुख अवतार — श्रीराम अवतार की विस्तृत कथा पर चलते हैं:
3. श्रीराम अवतार (त्रेतायुग)
अवतरण का उद्देश्य:
रावण, जो लंका का राजा था और शिव भक्त भी, अत्यंत बलशाली और अहंकारी हो गया था। उसने तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था। देवी-देवताओं की यज्ञ विधियाँ बाधित हो रही थीं। तब भगवान विष्णु ने यह वचन दिया कि वे मनुष्य रूप में जन्म लेकर रावण का अंत करेंगे, क्योंकि रावण को वरदान था कि वह देव, दानव आदि से तो मरेगा, पर मनुष्य को वह तुच्छ मानकर उससे सुरक्षा नहीं माँगी थी।
राम का जन्म:
- पिता: राजा दशरथ, अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशज
- माता: कौशल्या
- जन्मस्थान: अयोध्या
- तीन अन्य भाई: भरत (माता कैकेयी), लक्ष्मण और शत्रुघ्न (माता सुमित्रा)
श्रीराम विष्णु के सप्तम अवतार थे।
प्रमुख घटनाएँ:
1. विश्वामित्र के साथ वनगमन:
बाल्यावस्था में ही ऋषि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को राक्षसों (ताड़का, सुबाहु आदि) के संहार हेतु अपने साथ ले गए। वहीं उन्होंने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान दिया।
2. जनकपुरी में विवाह:
जनकपुरी में धनुष यज्ञ हुआ, जहाँ शिव का भारी धनुष तोड़ने वाले से सीता का विवाह होना था। श्रीराम ने सहजता से धनुष तोड़ दिया और सीता से विवाह हुआ।
3. वनवास:
कैकेयी की मांग पर श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला। सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ गए। इस अवधि में कई घटनाएँ हुईं:
- शूर्पणखा का अपमान
- खर-दूषण का वध
- सीता हरण
4. सीता हरण और लंका गमन:
रावण ने छल से सीता का हरण किया। श्रीराम ने हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, आदि की सहायता से वानर सेना बनाई और समुद्र पार कर लंका पहुँचे।
5. रावण वध:
भीषण युद्ध के बाद श्रीराम ने रावण का वध किया, जिससे धर्म की पुनः स्थापना हुई।
6. अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक:
वनवास पूर्ण कर श्रीराम अयोध्या लौटे। इस घटना को ‘रामनवमी’ और ‘दीपावली’ जैसे पर्वों में स्मरण किया जाता है।
रामराज्य:
श्रीराम का राज्य 'रामराज्य' कहलाया — न्याय, धर्म, करुणा और समृद्धि का युग। वे स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं, जो मानव रूप में परम आदर्श बनकर प्रकट हुए।
यदि आप चाहें, तो मैं अगले अवतार — कृष्ण अवतार (द्वापरयुग) की भी पूरी कथा प्रस्तुत कर सकता हूँ। कहिए, क्या उसे आगे बढ़ाया जाए?
अब प्रस्तुत है भगवान श्रीकृष्ण का अवतार — जो द्वापरयुग का सबसे महान और बहुआयामी अवतार माना जाता है।
4. श्रीकृष्ण अवतार (द्वापरयुग)
अवतरण का उद्देश्य:
धरती पर अत्याचार और अधर्म चरम पर था — कंस, जरासंध, शिशुपाल जैसे अत्याचारी राजाओं ने मानवता को त्रस्त कर रखा था। अधर्म बढ़ता गया और तब भगवान विष्णु ने वचन दिया:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत... तदा आत्मानं सृजाम्यहम्"
(भगवद्गीता 4.7)
धर्म की पुनर्स्थापना और पांडवों को धर्मयुद्ध में सहयोग देने हेतु भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया।
जन्म की कथा:
- पिता: वासुदेव
- माता: देवकी
- जन्मस्थान: मथुरा के कारागार में
- मामा: कंस (अत्याचारी राजा, जिसने अपनी बहन देवकी के सभी पुत्रों को मार डाला)
जैसे ही श्रीकृष्ण जन्मे, अद्भुत घटनाएँ घटीं — बंदीगृह के द्वार स्वयं खुल गए, नदी यमुना मार्ग बना गई, और वासुदेव श्रीकृष्ण को रात में गोकुल ले जाकर नंद-यशोदा को सौंप आए।
बाल्य जीवन की लीलाएँ (गोकुल–वृंदावन):
1. राक्षसों का वध:
- पूतना (विषमिश्रित दूध पिलाने आई)
- शकटासुर (गाड़ी के रूप में)
- तृणावर्त, अघासुर, बकासुर आदि का वध
2. गोवर्धन पूजा:
इंद्र के अभिमान को तोड़ने हेतु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाया और गांव वालों को बारिश से बचाया।
3. माखन चोरी और रासलीला:
उनकी बाल–शैली गोपियों के साथ रासलीला और माखन चोरी में दिखी — यह भक्ति मार्ग की नींव बनी।
कंस वध:
कृष्ण ने बाल्यावस्था में ही मथुरा जाकर कंस का वध किया और अपने माता–पिता को मुक्त किया।
द्वारका स्थापना:
कृष्ण ने यदुवंशियों को सुरक्षित रखने के लिए समुद्र तट पर द्वारका नामक नगर बसाया — यह एक भव्य नगरी थी।
महाभारत में भूमिका:
1. अर्जुन के सारथी:
कृष्ण ने युद्ध नहीं लड़ा, बल्कि अर्जुन के सारथी बनकर उन्हें भगवद्गीता का ज्ञान दिया — जो आज भी धर्म, कर्म और आत्मज्ञान का सर्वोत्तम मार्गदर्शन है।
2. नीति और युद्ध कौशल:
- शांतिदूत बनकर पहले कौरवों को समझाया
- भीष्म, द्रोण, कर्ण, दुर्योधन आदि के अंत के लिए योजनाएँ बनाईं
- अश्वत्थामा से उत्तरा के गर्भ की रक्षा हेतु सुदर्शन चक्र का प्रयोग
कृष्ण का अंतिम समय:
महाभारत युद्ध के बाद यदुवंश में आपसी संघर्ष हुआ और वह नष्ट हो गया। अंत में कृष्ण जंगल में विश्राम कर रहे थे, तब एक शिकारी जरा ने उन्हें हिरण समझकर तीर मारा।
श्रीकृष्ण ने अपने लौकिक शरीर का त्याग किया और वैकुंठ लौट गए।
महत्त्व:
- लीला पुरुषोत्तम: हर अवस्था में लीला (खेल) का भाव।
- राजनीति और धर्म का संतुलन: युद्ध में नैतिकता का मार्गदर्शन।
- भक्ति और ज्ञान के युग का प्रारंभ: गीता के माध्यम से।
अब यदि आप चाहें, तो हम अगले अवतार वामन, बुद्ध, या कल्कि की कथा ले सकते हैं। किसे आगे बढ़ाया जाए?
बिल्कुल, मैं आपको इन अवतारों — वामन, बुद्ध, और कल्कि — की विस्तृत कथाएँ विस्तार से बताता हूँ।
5. वामन अवतार (त्रेतायुग)
परिचय:
वामन अवतार भगवान विष्णु के दसवें अवतारों में से एक है। यह अवतार एक ब्राह्मण बालक के रूप में हुआ था, जिसमें वे अपनी चालाकी और धर्म की रक्षा की ताकत छिपाए थे।
कथा का विस्तार:
राजा बलि का बल और दानवीरता:
राजा बलि असुरों के राजा थे, अत्यंत शक्तिशाली और उदार। उन्होंने अपनी महा शक्ति से देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और स्वयं स्वर्ग के अधिपति बन गए। उनका शासन इतने व्यापक और दृढ़ था कि देवता उनके सामने टिक नहीं पाए।
लेकिन राजा बलि ने स्वयं को धर्मात्मा और दानवीर मान लिया था, परन्तु देवताओं का अधिकार छिन जाने से वे अधर्मी बन गए थे।
देवताओं की सहायता के लिए भगवान विष्णु का अवतार:
देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे बलि के अत्याचार को समाप्त करें और स्वर्ग पुनः प्राप्त करें। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।
वामन का बलि से मिलना:
वामन एक छोटे, सौम्य ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि के सामने आए। उन्होंने विनम्रतापूर्वक बलि से तीन पग भूमि दान में माँगी।
बलि ने हँसते हुए कहा, "मेरे पास तो समस्त पृथ्वी और स्वर्ग है, तीन पग तो तेरा छोटा सा दान है, ले जा।"
तीन पग भूमि मापन:
फिर वामन ने अपना रूप विशाल किया — अपने पहले पग से स्वर्ग को नापा, दूसरे पग से पृथ्वी को, और तीसरे पग के लिए बलि ने अपने सिर पर चढ़ने की अनुमति दी।
वामन ने तीसरा पग रखा और बलि को पाताल लोक में भेज दिया।
बलि को वरदान:
बलि ने भगवान विष्णु की भक्ति की और उन्हें पूरी निष्ठा से स्वीकार किया। इसलिए भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि वह युग-युगान्तर तक पाताल लोक के स्वामी रहेंगे और वे पुनः धरती पर आकर धर्म की स्थापना करेंगे।
6. बुद्ध अवतार (कलियुग का प्रारंभ)
परिचय:
बुद्ध अवतार भगवान विष्णु का नौवां या दसवां अवतार माना जाता है, खासकर कुछ पुराणों में। वे अहिंसा, प्रेम, और सत्य के लिए अवतरित हुए।
कथा का विस्तार:
समाज और परिस्थिति:
कलियुग के प्रारंभ में, धर्म में गिरावट आई। यज्ञ और धार्मिक कर्मकाण्ड भ्रष्ट हो गए, हिंसा और अत्याचार बढ़ गए। लोगों का भटकाव हो रहा था।
भगवान विष्णु ने इसी समय एक साधारण मनुष्य के रूप में सिद्धार्थ गौतम के रूप में जन्म लिया, जिनका नाम बाद में बुद्ध रखा गया।
बुद्ध का जीवन और उपदेश:
सिद्धार्थ राजकुमार थे, जिनका जीवन विलासितापूर्ण था। परन्तु उन्होंने संसार के दुःखों को देखकर renunciation (त्याग) किया और ज्ञान की खोज में निकले।
वे तपस्या और ध्यान के माध्यम से बोधि (ज्ञान) प्राप्त करने में सफल हुए और अहिंसा, करुणा, और मध्यम मार्ग का उपदेश दिया।
विष्णु अवतार के रूप में बुद्ध:
कुछ पुराणों में कहा गया है कि बुद्ध अवतार का उद्देश्य लोगों को यज्ञों, बलि, और हिंसा से दूर कर अहिंसा और शांति का मार्ग दिखाना था।
उनका उपदेश बौद्ध धर्म की नींव बना और आज भी दुनिया भर में अहिंसा और करुणा का संदेश फैलाता है।
7. कल्कि अवतार (भविष्य का अवतार)
परिचय:
कल्कि अवतार भगवान विष्णु का दसवां और अंतिम अवतार होगा, जो कलियुग के अंत में प्रकट होंगे।
कथा का विस्तार:
कलियुग की दशा:
कलियुग में अधर्म और पाप चरम पर पहुंच जाएगा। मनुष्य स्वार्थी, दुष्ट, और भ्रष्ट हो जाएंगे। धर्म का पतन होगा, और नैतिकता खत्म हो जाएगी।
कल्कि अवतार का आगमन:
ऐसे समय में भगवान विष्णु घोड़े पर सवार, तलवार लिए एक योद्धा के रूप में प्रकट होंगे।
वे अधर्म का संहार करेंगे, भ्रष्ट और दुष्टों का विनाश करेंगे, और धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।
सतयुग का पुनः आरंभ:
कल्कि के आगमन के बाद सतयुग फिर से प्रारंभ होगा, जो धर्म, सत्य, और न्याय का युग होगा।
अगर आप चाहें तो इन अवतारों से जुड़े कुछ और प्रसंग, उपाख्यान, और भजन या श्लोक भी प्रस्तुत कर सकता हूँ। बताइए!
Comments
Post a Comment