भारतीय व्रत उत्सव | 12 | हनुमज्जयन्ती

हनुमज्जयन्ती

समय-चैत्र शुक्ला पूर्णिमा अथवा कार्तिककृष्णा चतुर्दशी

कालनिर्णय

हनुमज्जयन्ती के समय के विषय में मत भेद है- उत्सवसिन्धु, व्रतरत्नाकर और वाल्मीकीयरामायण से कार्तिककृष्णा चतुर्दशी' सिद्ध होता है, किन्तु कुछ विद्वान् चैत्रशुक्ला पूर्णिमा मानते हैं। लोक में भी चैत्रशुक्ला पूर्णिमा ही अधिक प्रचलित है। ऐसी दशा में निश्चित निर्णय असम्भव है। जो लोग जैसा मानने हैं, मानते रहें। यह तिथि सायंकालव्यापिनी लेनी चाहिए, क्योंकि हनुमान् जी का जन्म रात्रि में माना जाता है।

१. उत्सवसिन्धु में लिखा है--
ऊर्जस्य चासिते पच्चे स्वात्यां भौमे कपीश्वरः । मेषलमेऽञ्जनीगर्भाच्छिवः प्रादुरभूत् स्वयम् ॥

व्रतरत्नाकर में भी दूसरे शब्दों में ऐसा ही लिखा है। वाल्मीकीय रामायण (उत्तरकाण्ड अ. ३५ श्लोक ३१) में लिखा है कि-हनुमान् जी जन्मते ही सूर्य को पकड़ने के लिए कूदे ।

यमेव दिवसं ह्येष ग्रहीतुं भास्करं प्लुतः । 
तमेव दिवसं राहुर्जिघृक्षति दिवाकरम् ॥

जिस दिन ये सूर्य को पकड़ने के लिए कूदे उसी दिन राहु अब भी सूर्य को पकड़ना चाहता है ।

जिससे यह सिद्ध होता है कि हनुमान् जी के जन्म के दूसरे दिन अमावस्या थीं, क्योंकि सूर्यग्रहण अमावस्या को होता है ।

विधि

जयन्ती मनाने की विधि रामनवमी के प्रसङ्ग में लिखी जा चुकी है। तद्‌नुसार ही व्रत, उपवास और पञ्चामृतस्नानादि इस दिन भी करना चाहिए। शृङ्गार में तैल सिन्दूर आदि और नैवेद्य में चना (भीगा हुआ अथवा भुना हुआ) गुड़ और बेसन के लड्डू अथवा बूँदी (मोतीचूर) के लड्डू अवश्य रहने चाहिए ।

हनुमान् जी बलवानों में प्रधान माने जाते हैं। मल्लविद्याविदों के तो वे इष्टदेव ही हैं। अतः उस दिन व्यायामप्रदर्शन अवश्य होना चाहिए ।

काल विज्ञान

ऊपर लिखा जा चुका है कि हनुमज्जयन्ती के विषय में मतभेद है, अतः कालविज्ञान पर कुछ नहीं लिखा जा सकता ।

विधिविज्ञान

पश्ञ्चामृत के गुण तो रामनवमी और जन्माष्टमी के प्रसंग में देखिए। शृङ्गार में तैल और सिन्दूर हनुमान् जी के स्वरूप के अनुरूप ही हैं। नैवेद्य में बेसन और बूँदी दोनों पक्वान्न चने से बनते हैं और चना तो स्वयं चना है ही, नैवेद्य में चना रखने का एक कारण तो स्पष्ट ही है कि चना वानरजाति का प्रिय पदार्थ है, आज भी मथुरा-वृन्दावन आदि में वानरों को चना तथा गुड़ दिया जाता है। दूसरे आयुर्वेद के अनुसारः-

चणकः शीतलो रूक्षः पित्तरक्तकफापहः ।
लघुः कषायो विष्टम्मी वातलो ज्वरनाशनः ॥ 
( भावप्रकाश)

चना शीतल, रूखा, रक्तपित्त और कफ को मिटाने वाला, हल्का-कसैला, विष्टम्भी (मल रोकने वाला), वायु करने वाला है और भीगा हुआ अथवा हरा चना तो-
आर्दोऽतिकोमलो रुच्यः पित्तशुक्रहरी हितः । 
(भावप्रकाश)
अत्यन्त कोमल, रुचि बढ़ाने वाला, पित्त, शुक्र को मिटाने वाला और पथ्य होता है।

इसी प्रकार गुड़ भी बड़ा लाभकारी है। आयुर्वेद कहता है-
गुडो वृष्यो गुरुः स्विग्धो वातन्नो मूत्रशोधनः ।

गुड़ शक्ति देने वाला, भारी, चिकना, वायु को नष्ट करने वाला और मूत्र को शुद्ध करने वाला है। आप देखेंगे कि चना वायु करता है और गुड़ वायु मिटाता है अतः इन दोनों का योग हो जाने से दोष निवृत्त होकर गुण की वृद्धि होती है। ऐसी वस्तु ही बल के प्रधान देवता को अर्पण करके लेनेवालों को भी लाभप्रद होगी इसी दृष्टि से हनुमान् जी के नैवेद्य में गुड़, चना प्रधान रखा गया है। बूँदी के लड्डू अथवा बेसन के लड्डू भी यही गुण रखते हैं, अतः इसी दृष्टि से उनका भी. उपयोग है।

अभ्यास

(१) हनुमज्जयन्ती किस दिन होती है? दिन के विषय में मतभेद का निरूपण करिए। दोनों में से आपको कौन दिन पसन्द है ? क्यों ?

(२) हनुमज्जयन्ती के दिन क्या-क्या करना चाहिए ?

-(३) हनुमान् जी को कौन नैवेद्य प्रिय है ?

(४) नैवैद्य की सामग्री के गुण-दोषों का विवेचन करिए ।

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