भारतीय व्रत उत्सव | 21 | वामन द्वादशी
भारतीय व्रत उत्सव | 21 | वामन द्वादशी
वामन द्वादशी
समय
भाद्रपद शुक्ला द्वादशी
कालनिर्णय
वामन भगवान् का अवतार श्रवणयुक्त भाद्रपद शुक्कु द्वादशी को मध्याह्न में हुआ है, अतः मध्याह्न में द्वादशी और श्रवण का योग हो वह दिन लेना चाहिए। मध्याह्न के अतिरिक्त अन्य किसी समय भीं द्वादशी के साथ श्रवण का योग हो तो वह भी लिया जाता है। यदि दोनों दिन श्रवण का योग हो तो पहले दिन करनी चाहिए। यदि द्वादशी के दिन श्रवण का किसी प्रकार योग न हो और एकादशी के दिन श्रवण हो तो द्वादशी में न करके एकादशी में वामन-जयन्ती । करनी चाहिए । यदि द्वादशी पूर्व दिन में ही मध्याह्वव्यापिनी हो और दूसरे दिन श्रवणः मध्याह्न के बाद हो तो पूर्व दिन ही करनी चाहिए। यदि दोनों दिन श्रवण हो तो जिस दिन द्वादशी मध्याह्वव्यापिनी हो उस दिन करनाः चाहिए। यदि दोनों दिन श्रवण का योग न हो और द्वादशी मध्याह्न-व्यापिनी हो तो एकादशी युक्त द्वादशी लेनी चाहिए।
विधि
मध्याह्न में यथासंभव नदियों के संगम में, अन्यथा अन्यत्र, स्नान करके पश्चामृतस्नानादि करवा के सुवर्ण की वामनमूर्त्ति को सुवर्ण के पात्र से अर्घ्यदान करे, ऐसा धर्मशास्त्र में विधान है, किन्तु मन्दिरों में इस दिन प्रायः शालग्रामजी को ही पञ्चामृतस्नान करवाया जाता है।
भगवान् का समारोहपूर्वक सेवा शृङ्गार और जयन्ती निमित्तक उपवास तो इस दिन की विशेष विधि है ही ।
पूजा का मन्त्र यह है -
देवेश्वराय देवाय देवसंभूतिकारिणे ।
प्रमवे सर्वदेवानां वामनाय नमो नमः ॥
अर्घ्य के मंत्र ये हैं-
नमस्ते पद्मनाभाय नमस्ते जलशायिने ।।
तुभ्यमर्घ्य प्रयच्छामि बालवामनरूपिणे ॥
नमः शाङ्गधनुर्वाणपाणये वामनाय च ।
यज्ञमुक्फलदात्रे च वामनाय नमो नमः ॥
यदि वामन भगवान् की सुवर्ण की प्रतिमा बनाई हो तो दूसरे दिन उसे ब्राह्मण को दान कर दे। दान का मंत्र यह है-
वामनः प्रतिगृह्णाति वामनोऽहं ददामि ते।
वामनं सर्वतोभद्रं द्विजाय प्रतिपादये ॥
कालविज्ञान
वर्षाऋतु और भाद्रपद्द्मास के विषय में तो जन्माष्टमी के प्रसंग में लिखा ही जा चुका है और शुक्ल पक्ष इसलिए है कि भगवान् वामन का अवतार केवल देवकार्य के लिए है। देवयोनि सात्त्विक है, अतः ऐसे अवतार में प्रकाश ही प्रधान रहना चाहिए। द्वादशी तिथि और श्रवण नक्षत्र के तो देवता विष्णु हैं ही (देखिए मु० चि० शुभाशुभ प्रकरण श्लो० ३ तथा नक्षत्र प्रकरण श्लो० १)।
विधिविज्ञान
स्नान, उपवास और पञ्चामृतस्नानादि के विषय में पहले लिखा जा चुका है। यहाँ मूर्त्ति और अर्घ्य दान के पात्र का सुवर्णमय होना इसलिए है कि धर्मशास्त्रों में देवों के कार्य में सुवर्ण और पितरों के कार्य में चाँदी का उपयोग लिखा है और वामन अवतार भी देवयोनि में है, अतः उनके लिए सुवर्ण का ही उपयोग करना चाहिए। देवकार्य में चाँदी का निषेध भी है'।¹
1. शिवनेत्रोद्भवं यस्माद्रजतं पितृवल्लभम् ।
अमङ्गलं तद्यत्नेन देवकार्येषु वर्जयेत् ।
( निर्णयसिन्धु, बैजवाप का वचन )
अभ्यास
(१) वामनद्वादशी कब होती है ?
(२) वामनद्वादशी के कालनिर्णय के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(३) कालविज्ञान और विधिविज्ञान का सारांश संक्षेप में कहिए।
(४) वामन की मूत्ति सुवर्णमय क्यों बनाई जानी चाहिए ?
Comments
Post a Comment