भारतीय व्रत उत्सव | 29 | मकरसंक्रान्ति

भारतीय व्रत उत्सव | 29 | मकरसंक्रान्ति

मकरसंक्रान्ति

समय

सूर्य जिस दिन मकर राशि में प्रविष्ट हों

काल-निर्णय

संक्रान्ति के प्रवेश से अनन्तर की ४० घड़ियाँ (१६ घंटे) पुण्यकाल माना जाता है। उनमें भी २० घड़ियाँ (८ घंटे) अत्युत्तम हैं। यदि सायंकाल में सूर्यास्त से १ घड़ी (२४ मिनट) पहले प्रवेश हो तो संक्रान्ति से पूर्व ही स्नान-दानादिक करने चाहिएँ, क्योंकि संक्रान्ति के दिन रात्रि में भोजन का निषेध है और संतानयुक्त गृहस्थ के लिए उपवास का भी निषेध है। रात्रि में संक्रान्ति का प्रवेश हो तो दूसरे दिन मध्याह्न तक स्नान-दानादि किये जा सकते हैं, किन्तु सूर्योदय से ५ घड़ी (२ घंटे) अत्यन्त पवित्र हैं। यह स्मरण रखना चाहिए कि संक्रान्ति के जितना समीप स्नान-दानादि हों उतना उत्तमं माना जाता है।

या याः संनिहिता नाड्यस्तास्ताः पुण्यतमाः स्मृताः ।,

शुक्लपक्ष' में सप्तमी के दिन यदि यह संक्रान्ति हो तो वह ग्रहण से भी अधिक मानी जाती है।

विधि

यह स्नान-दान का पर्व है। जो इस दिन स्नान न करे उसके लिए लिखा है कि वह सात जन्म तक रोगी और निर्धन होता है। प्रयागस्नान का इस दिन विशेष माहात्म्य है। संतानरहित व्यक्ति को उपवास भी करना चाहिए। संतानवाले को उपवास का निषेध है। अधिकारी व्यक्ति को श्राद्ध भी करना चाहिए। इस दिन तिलदान और वस्त्रदान का विशेष फल है।

१. 'शुक्लपक्षे तु सप्तम्यां संक्रान्तिर्ग्रहणाधिका ।' (धर्मसिन्धु)
२. 'रविसंक्रमणे प्राप्ते न स्नायाद्यस्तु मानवः । सप्तजन्मसु रोगी स्यान्निर्धनश्चैव जायते ॥' (धर्मसिन्धु )

काल-विज्ञान

ग्रहों के घूमने के मार्ग को क्रान्तिवृत्त कहा जाता है। इस वृत्त के बारह विभाग हैं जिनको मेष, वृष इत्यादि बारह राशियाँ कहा जाता है। सूर्य भी इन १२ राशियों का एक वर्ष में परिक्रमण कर लेता है। उसके एक राशि से दूसरी राशि पर जाने को संक्रमण अथवा संक्रान्ति कहते हैं। १२ राशियों में से कर्क से धनराशि (चौथी से नवीं) तक दक्षिणायन रहता है। जिस दिन सूर्य मकर (दसवीं) राशि पर प्रवेश करता है उस दिन से उत्तरायण आरम्भ होता है। अभिप्राय यह कि सूर्य की मकरसंक्रान्ति उत्तरायण का आरम्भ है। पूर्वोक्त बारह संक्रान्तियों में से प्रत्येक संक्रान्ति का दिन पवित्र माना जाता है, पर उनमें भी अयन-संक्रान्ति (कर्क और मकर) विशेष पवित्र और उन दोनों में से उत्तरायण की संक्रान्ति देवताओं के दिनारम्भ का दिवस होने से सर्वोत्तम मानी जाती है। धर्मशास्त्रों में इस पवित्र दिवस के दिन स्नान-दानादि का विशेष फल लिखा है। सप्तमी सूर्य का दिन है -'सप्तम्यां भास्करस्य च (अग्निपुराण)' और शुक्लपक्ष की प्रशस्तता तो पहले अनेक स्थानों पर बताई ही जा चुकी है। अतः शुक्लसप्तमी को इसकी विशिष्टता उचित ही है।

विधि-विज्ञान

स्नान और दान के गुणधर्म पहले लिखे जा चुके हैं। इस पवित्र काल में वे दोनों पवित्र कार्य अवश्य ही होने चाहिएँ, इसमें विशेष उपपत्ति की आवश्यकता नहीं है। तिलों का उपयोग इस दिन इसलिए श्रेष्ठ माना गया है कि दानों में हमारे यहाँ गौ और भूमि के अनन्तर तिल का ही माहात्म्य है। याज्ञवल्क्य कहते हैं कि-2

'गोभूतिलहिरण्यादि पात्रे दातव्यमुत्तमम्' ।

और यह समय तो शीतकाल का है। शीतकाल में तो तिल और वस्त्र जैसा दान और हो ही क्या सकता है। अतः इस दिन इनका दान अवश्य करना चाहिए। प्रत्येक धर्मकार्य में, देवता और पितर ही मुख्य हैं। अतः पितरों की तृप्ति के लिए इस दिन श्राद्ध करने का भी विधान है।

सूर्यपुत्री यमुना और भगवान् के चरणोदकरूप गङ्गाजी का संयुक्त जल ऐसे स्नान के पर्व में सर्वोत्तम समझा ही जाना चाहिए इसमें विशेष उपपत्ति अनावश्यक है।

अभ्यास
(१) संक्रान्ति कब होती है ? संक्रान्तियों में मकरसंक्रान्ति की विशिष्टताः क्यों मानी जाती है ?
(२) इस दिन क्या-क्या कार्य होते हैं ?
(३) इस दिन सप्तमी का योग क्यों प्रशस्त है ?
(४) तिलदान और गङ्गा-यमुना स्नान की क्यों विशिष्टता है ?


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