भारतीय व्रत उत्सव | 30 | वसंत पंचमी

भारतीय व्रत उत्सव | 30 | वसंत पंचमी 

वसन्तपञ्चमी

समय

माघशुक्ल पंचमी

काल-निर्णय

यह पूरे पूर्वाद्ध में हो तो दूसरे दिन अन्यथा पूर्व दिन करनी चाहिए।

विधि

यह उत्सव ऋतुराज वसन्त के आरम्भ का है, अतः इस दिन से होरी और धमार का गाना आरम्भ होता है। जौ और गेहूँ की बालें इत्यादि भगवान् को सबसे प्रथम अर्पण की जाती हैं। इस दिन रति और काम की पूजा का विधान है। सरस्वतीपूजन और वैदिकों का पूजन भी किया जाता है। शास्त्रों में इस दिन विष्णु भगवान्¹ के पूजन की विधि है। मथुरामण्डल और ब्रज का यह महान् उत्सव है। कथा से भी इस उत्सव में भगवान् कृष्ण की ही प्रधानता सिद्ध होती है।

काल-विज्ञान

यद्यपि यह उत्सव वसन्त के आरम्भ का दिन माना जाता है, किंतु चास्तव में बवन्त्त का आरम्भ चैत्र मास से अथवा सूर्य के मेष राशि पर प्रवेश से होता है, अतः साधारण बुद्धि से इस दिन वसन्तारम्भकी बात समझ में नहीं आती, तथापि इस दिन वसन्तारम्भ का कारण यह है कि प्रत्येक ऋतु का ४० दिन का गर्भकाल होता है और यह दिन वैशाख कृष्ण प्रतिपदा (जो चान्द्रमास के हिसाब से वसन्तारम्भ का दिन है) से पूरे ४० दिन पूर्व पड़ता है। प्रत्यक्ष भी देखते हैं कि वसन्त का कुसुमाकरत्व वसन्तपञ्चमी के आसपास ही आरम्भ होता है। आमों में बौर आ जाते हैं, गुलाब मालती आदि खिलने लगते हैं, भौरों की गुंजार और कोयलों का आमों पर कुहूरव आरम्भ हो जाता है और जौ-गेहूँ में बालें भी इसी समय आने लगती हैं। अतः इसका वसन्तपञ्चमी नाम सार्थक ही है।

1. 'माघे मासि सिते पक्षे पञ्चम्यां पूजयेद्धरिम्।' (हेमाद्रि)

विधि-विज्ञान

वसन्तऋतु में प्रकृति स्वभावतः प्रमुदित होती-सी प्रतीत होती है। सब वृक्षों में नवीन पत्र-पुष्प आते हैं। पुरानी वस्तुएं भी नवीन होने लगती हैं। न अत्यन्त शीत रहता है, न अत्यन्त उष्णता, अतः स्वस्थ मनुष्यों में स्वतः ही विविध विहारों की इच्छा प्रकट होती है। गाने को जी चाहता है। आयुर्वेद² कहता है कि वसन्त में शीतकाल का कफ सूर्य की किरणों से प्रेरित होकर अग्नि को बाधित करता है और अनेक रोग उत्पन्न करता है। अतः कफ को निवृत्त करना आवश्यक है। गाने और खूब बोलने से गले में एकत्रित कफ शान्त होता है। इसीलिए वसन्तोत्सव में आनन्ददायक होरी, धमार आदि का गाना रखा गया है।

वसन्त ऋतु मदनोद्दीपक है, अतएव इस ऋतु में आयुर्वेद स्त्रियों के और काननों के यौवन के सेवन की आज्ञा³ देता है। इस सेवन के अधिदेवता हैं काम और रति । अतः इस उत्सव में काम और रति की प्रधानरूप से पूजा की जाती है। पराधीनता के समय यद्यपि ये उत्सव शिथिल हो गए तथापि स्वतन्त्र भारत में इनका बहुत प्रचार था। 
( देखिए महाराज श्रीहर्ष की 'रत्नावली नाटिका' में वसन्तोत्सव वर्णन )

2. वसन्ते निचितः श्लेष्मा दिनकृन्द्भाभिरीरितः ।
कायाग्नि बाधते रोगांस्ततः प्रकुरुते बहून् ॥ (च० सं० ६।२२)

3. वसन्तेऽनुभवेत् स्त्रीणां काननानां च यौवनम् । (च. सं. ६।२६)

वेदाध्ययन के आरम्भ का भी प्रधान समय यही था। वेद कहता है 'वसन्ते ब्राह्मणमुपनयीत' । विद्या की अधिदेवता सरस्वती है, अतः इस दिन सरस्वती और सब विद्याओं के निधान वेदों के रक्षक वैदिकों का पूजन उचित ही है। वैदिकों की तो पूजा ही आजकल वसन्तपूजा के नाम से कही जाती है।

जगत् के पालनकर्ता भगवान् विष्णु और परब्रह्म के पूर्णावतार आनन्दमूत्ति भगवान् कृष्ण तो इस उत्सव के अधिदेवता होने ही चाहिएँ, क्योंकि यह आनन्दोत्सव है।

सारांश यह कि यह उत्सव आनन्द-विनोदद्मय है और इसीलिए भगवान् की लीलाभूमि ब्रज में इस उत्सव की प्रधानता है।

कथा

राजा अम्बरीष ने पूछा- हे ब्रह्मन्, वसन्तोत्सव किस विधि से किया जाता है ? हे विधिज्ञों में श्रेष्ठ मुनिराज ! मुझे सब वर्णन करिए।

वशिष्ठजी ने कहा- वसन्त का आरम्भ माघशुक्ल पंचमी के दिन होता है। उस दिन सब पापों का नाशक यह उत्सव करना चाहिए । प्रातःकाल के समय (स्नानादि द्वारा) पवित्र होकर अच्छे प्रकार से भक्तियुक्त होते हुए भगवान् कृष्ण के दिव्य मन्दिर में अच्छी तरह शोभा की जाती है।

रेशमी वस्त्र, मणि, मुक्ताफल आदि के द्वारा और पत्र-पुष्प तथा फलों के द्वारा एवं विशेषतः नवीन पल्लवों की बन्दनवारों द्वारा मण्डप की शोभा करके रेशमीव स्त्र से आच्छादित बड़े सिंहासन पर गोविन्द भगवान् (श्रीकृष्ण) को विराजमान करे ।

इस दिन नाना रत्नों से सुशोभित भूषणों से भगवान् को भूषित करने से मनुष्य कृतार्थ हो जाता है।

फिर गोविन्द के आगे गीत, नृत्य, वाद्य, सितार, मृदङ्ग, वीणा और बंशी के शब्द करने चाहिएँ। वेद के विद्वान् ब्राह्मण को व्यासरूप से बैठाकर उससे वसन्तोत्सव की कथा सुनना चाहिए, तदनन्तर दक्षिणा, गन्ध और पुष्पों से व्यास का पूजन करके वस्त्रादि द्वारा वैष्णवों का पूजन करना चाहिए। जितने श्रोता आए हों उनका भी श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए चरणामृतदान और महाप्रसाद आदि से पूजन करना चाहिए ।

हे राजन्, इस प्रकार जो वसन्तोत्सव करता है वह इस लोक में परम सुख और धन-धान्य को प्राप्त होता है। इस उत्सव का करनेवाला पुरुष आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, बुद्धि और सब लोक में प्रधानता को प्राप्त करता है।

महाभाग राजा अम्बरीष ने मुनिश्रेष्ठ वशिष्ठजी से जब यह सुना तो उसने वसन्तपञ्चमी के दिन विधिपूर्वक उत्सव किया। उस पुण्य के प्रभाव से उसे अत्यन्त सफलता प्राप्त हुई। अतः मनुष्यों को वसन्तोत्सव सदा करना चाहिए ।

श्रीपंचमी (वसन्तपंचमी) से लेकर हरिशयनी एकादशी पर्यन्त बसन्तराग गाना चाहिए। अन्य किसी ऋतु में नहीं ।

अब मैं कुंजविलासिनी, कुंजेश्वरी (श्रीराधा) को नमस्कार करके यथाबुद्धि वसन्तोत्सव के कृत्य का वर्णन करता हूँ।

माघ मास की शुक्कुपंचमी के दिन पूर्ण भक्तिमान् होकर श्रीकृष्ण का प्रीतिदायक वसन्तोत्सव करना चाहिए। श्रीकृष्ण की मूर्त्ति के आगे अथवा स्वरूप (वेषधारी बालक) बनाकर तीन, पाँच अथवा आठ ब्रजाङ्गनाएँ बनानी चाहिएँ। अनेक प्रकार के भावों और विधानों के जाननेवाले श्यामवर्ण कमलनयन गोपालवेषधारी श्रीधर (भगवान् श्रीकृष्ण) बनाकर उत्सव करना चाहिए। परमात्मा कृष्ण के लिए बहुत सी रोरी, बहुत से ताम्बूल के बीड़े और अनेक मिष्टान्न तयार करने चाहिएँ।

पुरुष को पुष्पों और पल्लवों की शोभा से युक्त और आम्रमञ्जरियों से सुन्दर वसन्तोत्सव बड़े भक्तियुक्त होकर मनाना चाहिए। उस दिन ऐसा सुन्द्र वन बनाना चाहिए जिसमें वीणा, मृदङ्ग, ताली आदि वाद्यों से परिपूर्ण नृत्यों के द्वारा सानन्द कृष्ण को ब्रजसुन्दद्रियाँ चारों ओर से वक्र नेत्रों द्वारा देख रही हैं, श्रीकृष्ण उन्हें सींच रहे हैं और कुंकुम की बिन्द्रियाँ लगा रहे हैं तथा वे भी उनको कस्तूरी, कपूर, अगर और चन्दन की सुन्द्र रज के पुंजों से खिला रही हैं। भगवान् श्रीकृष्ण राधाजी को ताम्बूल दे रहे हैं और राधिकाजी उन्हें दे रही हैं तथा गोपियाँ मनोहर वसन्तराग गा रही हैं।

अनन्तर सबसे पहले भगवान् को भोग लगाकर भगवान् की आरती करे और फिर भक्तों को दान, मान और भोजन द्वारा सन्तुष्ट करे ।

श्रीकृष्ण का मन्द्रि धूप और दीपक आदि से खूब सजाना चाहिए और वैष्णवों को आमन्त्रित करके स्वयं पूजाविधि करनी चाहिए।

(व्रतार्क में विष्णुधर्मोत्तरपुराण से)

अभ्यास
(१) वसंतपंचमी कब होती है ?
(२) यह वसन्तारम्भ का दिन क्यों माना जाता है ? जब कि नियमानुसार वसन्त ऋतु का आरंभ इस दिन नहीं होता ।
(३) विधि और विधि-विज्ञान समझाइए ।
(४) कथा का सारांश कहिए ।

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