भारतीय व्रत उत्सव | 28 | यमद्वितीया अथवा भ्रातृद्धितीया

भारतीय व्रत उत्सव | 28 | यमद्वितीया अथवा भ्रातृद्धितीया

समय

कार्तिक शुक्ला द्वितीया

समय-निर्णय

यह द्वितीया यदि प्रतिपदा के दिन संपूर्ण अपराह्न में हो तो पहले दिन करना चाहिए, अन्यथा द्वितीया के दिन ही करनी चाहिए ।

विधि

इस दिन यमुनास्नान, यमपूजन और बहिन के घर भाई का भोजन विहित है। इसीलिए इसे साधारण भाषामें भाईदोज भी कहते हैं।

कालविज्ञान

शरऋतु रोगों की माता कही जाती है- 'रोगाणां शारदी माता," और उसमें भी कार्तिक मास का अन्तिम भाग 'यमदंष्ट्रा¹ कहा जाता है। 'यमदंष्ट्रा' से पूर्व द्वितीया के दिन यमुनास्नान और यमपूजन का विधान उचित ही है। द्वितीया² का दिन इसलिए रक्खा गया है।क द्वितीया यात्रा, व्रतारम्भ तथा मङ्गलकार्यों के लिए विशेष रूप से विहित है और इस दिन यमुना की यात्रा, व्रत तथा यमपूजन ही किए जाते हैं।

1. कात्तिकस्य दिनान्यष्टावष्टावाग्रहणस्य च । 
यमदंष्ट्रा समाख्याता स्वल्पभुक्तो हि जीवति ॥
( शार्ङ्गधरसंहिता ५. ख. अ. ३ श्लो.-३००)
2. सप्ताङ्गचिह्नानि नृपस्य वास्तुव्रतप्रतिष्ठाखिलमङ्गलानि । यात्राविवाहाखिलभूषणाद्यं कार्यं द्वितीयादिवसे सदैव ॥
(मु० चि० पीयूषधारा में वशिष्ठ का वचन )

विधिविज्ञान

स्नान के गुणधर्म तो पहले लिखे ही जा चुके हैं। वह शरऋतु में अशस्त है- यह भी लिखा जा चुका है (देखिए शरत्पूर्णिमा)। यमुनाजल की विशेषताएँ आगे बताई जा रही हैं। यम मृत्युदेवता हैं और कृषिप्रधान भारतवर्ष में शरऋतु में मलेरिया आदि रोगों की प्रधानता रहती है, अतः उस समय यम का पूजन उचित ही है।

भारतीय संस्कृति में बहिन दया की मूर्त्ति मानी गई है- 'दयाया भगिनी मूर्त्तिः' (श्रीमद्भागवत ११ स्कं.) उसके शुभाशीर्वादपूर्वक उसके हाथ से भोजन करना आयुवर्धक तथा आरोग्यकारक है, अतः शुद्ध प्रेम के प्रतीकरूप इस उत्सव को बड़े प्रेम से मनाना चाहिए ।

यमुना-माहात्म्य

यमुनाजी सूर्यनारायण की पुत्री हैं। कारण यह है कि जिस प्रकार गङ्गा प्रथमतः हिमनदी (ग्लैसियर) है उसी प्रकार यमुना भी हिमनदी है। सूर्य की किरणों से उत्पन्न भाप (वाष्प) जो शुद्ध जलरूप होती है वही हिमनदी के रूप में परिणत होती है। मूलतः वही शुद्ध जल यमुना के जलरूप में आता है। शरऋतु से स्वच्छ किया हुआ वह यमुना-जल यदि कात्तिक में प्राप्त हो जाय तो सर्वरोगनिवर्तक है। यह तो औतिक्र दृष्टि से यमुना का माहात्म्य है। पर आस्तिकों के लिए तो यमुना के समान किसी नदी का माहात्म्य ही नहीं है, क्योंकि परब्रह्म के पूर्णावतार भगवान् श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का सम्पर्ण सम् इसी के जल और इसी की रज से है । अन्नकूट के  दूसरे दिन पवित्र जल का पान और स्नान श्रद्धालु के हृदय को भगवल्लालाओं निकट सम्पर्क में ले जा सके और सब पापों की निवृत्ति कर सके इसमें सन्देह का अवकाश ही नहीं है।

यमद्वितीया का माहात्म्य

यमद्वितीया के विषय में लिखा है कि-
कार्त्तिकमास के शुक्कुपक्ष की द्वितीया के दिन अपराह्न के समय जो यमराज का पूजन करता है और यमुनाजी में स्नान करता है वह यमलोक नहीं देखता । कात्तिकशुक्ला द्वितीया के दिन पूजन और तर्पण करने से अपने प्रसन्न किंकरों से युक्त यमराज पूजा करनेवाले को वांछित फल प्रदान करते हैं। (व्रतार्क में स्कन्द‌पुराण से)

`भगवान् कृष्ण ने कहा- हे युधिष्ठिर ! श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कात्तिक की चार द्वितीयाएँ प्रशस्त हैं। उनमें से कात्तिक के शुक्लपक्ष में द्वितीया के दिन यमुनाजी ने पहले अपने घर पर यमराज को भोजन कराया था और उनका सत्कार किया था, अतः यह द्वितीया त्रिलोकी में यम-द्वितीया के नाम से विख्यात है। इस दिन मनुष्यों को अपने घर नहीं खाना चाहिए। प्रयत्न्न करके बहिन के हाथ से खाना चाहिए । यह भोजन पुष्टि बढ़ानेवाला है। इस दिन बहनों को विशेष रूप से दान देने चाहिएँ। सब बहनों का सुवर्ण के गहने, वस्त्र, अन्न, सत्कार और भोजन द्वारा पूजन करना चाहिए। यदि सगी बहन न हो (अथवा आप्त न हो सके) तो प्रतिपन्ना³ (मौसी) के हाथ से खाना चाहिए । पूर्वोक्त चारों द्वितीयाओं में बहिन के हाथ से खाना चाहिए। इससे बल की वृद्धि होती है। यह भोजन धन, यश और आयु के लिए हितकारी है। धर्म, काम तथा अर्थ का सिद्ध करनेवाला है। जिस तिथि को बहिन के प्रेम से यमुनाजी ने अपने हाथ से यमराज देव को भोजन कराया उस दिन जो बहिन के हाथ से खाता है वह सर्वोत्तम धनधान्य प्राप्त करता है। (हेमाद्रि में भविष्यपुराण से)

3. 'प्रतिपन्ना मातृभगिन्यः ।' इति हेमाद्रिः (निर्णयसिन्धु )

जो स्त्री द्वितीया के दिन भाई को भोजन करवाती है और ताम्बूलों द्वारा सत्कार करती है वह विधवा नहीं होती और न कभी भाई का आयुःक्षय होता है। इस दिन यमराज, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भातृमती बहनों को अर्घ्य भी देना चाहिए।

अर्घ्य देने का मन्त्र यह है-

पह्य हि मार्त्तण्डज पाशहस्त यमान्तकालोकमयाऽमरेश । भ्रातृद्वितीयाकृत देवपूजां गृहाण चाय भगवन्नमस्ते ॥ धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज । त्राहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोस्तु ते ॥

कात्तिक के शुक्लपक्ष में द्वितीया के दिन जो बहनें भाई का पूजन नहीं करतीं उनके सात जन्मों में भाई नष्ट होते हैं। (व्रतार्क में स्कन्द-पुराण से)

(भाई कहे कि) मैं तुम्हारे घर आया हूँ। हे भली बहिन, मुझे तुम कल्याणार्थ स्त्रादिष्ठ प्रास खिलाओ ।

भाई का कोमल वचन सुनकर बहिन शीघ्रता करती है और कहती है- हे मानदाता भाई, मैं आज तुम्हारे कारण भ्रातृमती हूँ और धन्य हूँ। तुम्हें आज मेरे मान तथा तुम्हारी आयु के लिए मेरे घर पर भोजन करना चाहिए। हे भाई, कार्त्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन अपने सगे भाई यमराज को यमुनाजी ने अपने घर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। इस दिन यमराज ने जो स्त्री-पुरुष कर्मपाशों से बंधे हुए स्वेच्छा से पाप-फल भोगते है उन्हें कर्मबन्धनों से छुड़ा दिया था। उन लोगों ने यमराष्ट्र में सुखदायी महोत्सव किया था इसलिए हे बन्धु, मेरे घर भोजन करो ।

इस तरह बहन का आशीर्वाद लेकर उसे नमस्कार करे और उसकी पूजा करे। इस दिन (छोटी-बड़ी) सब बहनों की पूजा करनी चाहिए।

इस दिन छोटी-बड़ी दोनों बहनें बड़ी हैं। वित्त के अनुसार वस्त्रादिक से उनका सत्कार करना चाहिए।

भाई की आयुष्य बढ़ने के लिए बहनों को यमराज तथा चिरजीवियों की प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिए। आठ चिरजीवी ये हैं-मार्कण्डेय, बलि, व्यास, हनूमान, विभीषण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और परशुराम । ( फिर मार्कण्डेय से प्रार्थना करनी चाहिए कि)

मार्कण्डेय महामाग सप्तकल्पान्तजीवित । चिरजीवी यथा त्वं हि तथा मे भ्रातरं कुरु ॥

हे महाभाग मार्कण्डेय, आप सात कल्पों के अन्त तक जीनेवाले चिरजीवी हैं। जैसे आप हैं वैसा ही मेरे भाई को कर दीजिए । (व्रतार्क में पद्मपुराण से)।

अभ्यास
(१) यमद्वितीया कब होती है ? इसका दूसरा नाम क्या है ?
(२) इस दिन क्या करना चाहिए ?
(३) यमद्वितीया का कालविज्ञान और विधिविज्ञान समझाइए ।
(४) यमुनाजी का क्या माहात्म्य है ?
(५) यमद्वितीया के माहात्म्य का सारांश कहिए ।

Comments

Popular posts from this blog

लो शू अंकज्योतिष 02 | Ch. 00 Lo Shu: Definition, Nature and History

व्यूह और अवतार

सप्तर्षि संवत्