श्रीजयादुर्गा स्तोत्र
#श्रीजयादुर्गा स्तोत्र =हिन्दी अर्थ सहित} (ब्रह्मवैवर्तपुराण,श्रीकृष्णजन्मखण्ड,अध्याय 27) में भगवान श्रीनारायण कहते हैं- मुने ! अब तुम देवी का वह स्तवराज सुनो, जिससे सब गोपकिशोरियाँ भक्तिपूर्वक पार्वती जी का स्वतन करती थीं, जो सम्पूर्ण अभीष्ट फलों को देने वाली हैं। जब सारा जगत घोर एकार्णव में डूब गया था, चन्द्रमा और सूर्य की भी सत्ता नहीं रह गयी थी, कज्जल के समान जलराशि ने समस्त चराचर विश्व को आत्मसात कर लिया था, उस पुरातन काल में जलशायी श्रीहरि ने ब्रह्माजी को इस स्तोत्र का उपदेश दिया। उपदेश देकर उन जगदीश्वर ने योगनिद्रा का आश्रय लिया। तदनन्तर उनके नाभिकमल में विराजमान ब्रह्मा जी जब मधु और कैटभ से पीड़ित हुए, तब उन्होंने इसी स्तोत्र से मूलप्रकृति ईश्वरी का स्तवन किया। हरि ॐ तत्सत् श्रीगणेशाय नमः। 'ॐ नमो भगवती जयदुर्गायै' 🍁विनियोगः -ॐ अस्य श्रीजयदुर्गा महामन्त्रस्य, मार्कण्डयो मुनिः, बृहतीछन्दः, श्रीजयदुर्गा देवता, प्रणवो बीजं, स्वाहा शक्तिः । श्रीदुर्गा प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । 🍁हृदयादिन्यासः - ॐ दुर्गे हृदयाय नमः । ॐ दुर्गे शिरसि स्वाहा । ...