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Showing posts from August, 2025

सप्तर्षि

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सम्पादकीय भारत ऋषियों की परम्परा का राष्ट्र है। यहाँ लिपि के विकास से बहुत पहले से ज्ञान-विज्ञान की मौखिक परम्परा रही है। व्यक्ति, कुटुम्ब, समाज, परिवार क्रमशः बृहत्तर ईकाइयों के प्रति हमारे कर्तव्य इन परम्पराओं में अनुस्यूत रहे हैं। व्यक्ति स्वयं है, एक साथ भोजन करने वाले कुटुम्ब हुए, एक ऋषि-परम्परा को मानने वाले यानी एक गोत्र के समूह समाज कहलाये और समस्त प्राणिमात्र परिवार कहलाये। हमारे ऋषियों ने वृक्ष, पर्वत, नदी आदि समस्त जैविक और अजैविक वातावरण के साथ व्यक्ति का अटूट सम्बन्ध माना है, उसके प्रति कर्तव्यों का निर्धारण किया है, जो आदिकाल में मौखिक परम्परा में दैनन्दिन में प्रचलित व्यवहार में रही, बाद में उसे किसी व्यक्ति ने अपनी भाषा दी, उसे लिपिबद्ध किया। तथापि हम मूल प्रवर्तक को उसका श्रेय देते रहे। अतः सूत्रों, स्मृतियों, संहिताओं तथा धर्मशास्त्रों को हम उनके उपलब्ध पाठ के आधार पर पौर्वापर्य काल निर्धारित नहीं कर सकते। सृष्टिकाल के आरम्भ से ही ऋषियों का अस्तित्व माना गया है। इनमें से दस ब्रह्मा के पुत्र माने गये हैं। इन्ही दस में से सात सप्तर्षि हैं। इन सप्तर्षियों ने ...

खरमास : एक सिंहावलोकन (धरमायन)

खरमास : एक सिंहावलोकन (धरमायन) डॉ. रामाधार शर्मा "शास्त्रों के अनुसार सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है और गुरु परमात्मा का स्वरूप है। सूर्य के गुरु की राशि में आने पर अथवा गुरु के सूर्य की राशि में आने पर आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। ऐसी उत्कृष्ट दशा में यदि हम लौकिक कर्म (ईश्वराराधन आदि छोड़कर) करते हैं, तो मूल विन्दु से हटकर हमलोग लौकिक कर्म है। में फँस जाते हैं और अन्तम परिणति की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं।" भारत एक धर्मप्राण सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, एवं व्रत पर्व तथा उत्सवों का देश है। यहाँ वर्ष भर पर्व, उत्सव एवं विभिन्न कार्यक्रम मौसम तथा समयानुरूप निर्धारित होकर चैत्रादि मासों में आयोजित होते रहते हैं जिससे मानव जीवन एवं समाज में निरंतरता और उत्साह बना रहता है। यहाँ की संस्कृति अतीत को स्मरण में रखते हुए वर्तमान में जीवन यापन कर भविष्य को संरक्षित करने की क्षमता रखती है। इसी क्रम में एक शब्द आता है खरमास। खरमास शब्द 'खर' और 'मास' की संधि से बना है। खर का अर्थ होता है रुक्ष, कठोर, खुरदरा आदि और मास का अर्थ होता है महीना। अतः खरमास का सामान्य अर्थ हुआ ऐसा ...

वास्तु देवता की उत्पत्ति कैसे हुई

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          ✴️आज की विशेष प्रस्तुति✴️      💥वास्तु देवता की उत्पत्ति कैसे हुई 💥               🕉️✴️✴️🌞✴️✴️🕉️   ________________________________ जाने, वास्तु देवता की उत्पत्ति कैसे हुई, कैसा है उनका स्वरूप और क्या है उनका मूल मन्त्र ? वास्तुदेवता की पूजा के लिए वास्तु की प्रतिमा तथा वास्तुचक्र बनाया जाता है । वास्तुचक्र अनेक प्रकार के होते हैं । अलग-अलग अवसरों पर भिन्न-भिन्न पद के वास्तुचक्र बनाने का विधान है । वास्तु कलश में वास्तुदेवता (वास्तोष्पति) की पूजा कर उनसे सब प्रकार की शान्ति व कल्याण की प्रार्थना की जाती है। जिस भूमि पर मनुष्य या प्राणी निवास करते हैं, उसे वास्तु कहा जाता है । शुभ वास्तु के रहने से वहां के निवासियों को सुख-सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और अशुभ वास्तु में निवास करने से हानिकारक परिणाम मिलते हैं।  वास्तु देवता कौन हैं ? मत्स्यपुराण के अनुसार प्राचीनकाल में अन्धकासुर के वध के समय भगवान शंकर के ललाट से पृथ्वी पर जो स्वेदबिन्दु (पसीने की बूंदें) गिरे उन...

भारतीय संवत्सर धरमायन मैगजीन से

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।‌। एक ।। भारतीय संवत्सरों का चक्रव्यूह हमारा भारतवर्ष विविधताओं से भरा विशाल देश है। वस्तुतः यह विभिन्न संस्कृतियों तथा परम्पराओं से भरा हुआ एक विशाल गणराज्य है। यहाँ हम संस्कृति, इतिहास, धार्मिक परम्पराओं में ऊपरी सतह पर विविधता देखते हैं, पर अंदर से यह एक सूत्र में निबद्ध आर्यावर्त और दक्षिणापथ का सम्मिलित रूप भारत है। यहाँ परम्परा में वर्ष-गणना के अनेक रूप मिलते हैं। प्रख्यात राजा के नाम पर वर्ष की गणना की गयी, ज्योतिषीय गणना के लिए ज्योतिर्विदों के द्वारा संवत्सर चलाया गया। कुछ संवत्सर सीमित क्षेत्र में सीमित काल के लिए चले और अतीत के गर्भ में समा गये। कुछ ऐसी वर्ष गणना है जो आज तक व्यापक क्षेत्र में प्रचलित है। इस प्रकार हम राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तर पर कलि संवत्, शक संवत्, विक्रम संवत्, कलिंग संवत्, भास्कर संवत्, लक्ष्मण संवत्, काश्मीर संवत्, आदि सैकड़ो प्रकार की गणनाएँ देखते हैं। भारत के विभिन्न शिलालेखों में, पाण्डुलिपियों में इन संवत्सरों का जब हमें प्रयोग मिलता है तो कभी-कभी संवत्सर का नाम न होने के कारण उलटा-पुलटा समझ बैठते हैं और काल निर्धारण में भ्रान्ति हो जाती है। मध्...